गिलगित-बाल्टिस्तान व पीओके की अहमियत (मार्च 2021)- राष्ट्रीय सहारा
गिलगित-बाल्टिस्तान व पीओजेके की अहमियत
गिलगित-बाल्टिस्तान व पाक
अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके)
हजारों वर्षों से अखंड भारत हिस्सा रहा है। पाक अधिकृत
जम्मू-कश्मीर में शारदा पीठ है जहां पर माता सती का दाहिना हाथ गिरा था, जो 51 शक्तिपीठों में एक है। यह वैदिक काल में अध्ययन
का एक प्रमुख केंद्र था। कनिष्क शासनकाल में भी इसका शैक्षिक
महत्व रहा है। यहाँ स्थापित शारदा विश्वविद्यालय ने अपनी खुद की शारदा लिपि भी विकसित की थी। विश्व
का सबसे बड़ा पुस्तकालय होने के साथ ही पाणिनि और अन्य व्याकरणियों द्वारा लिखे गए ग्रंथ संग्रहीत थे। 11वीं
शताब्दी में कल्हण व अलबरूनी ने भी शारदा पीठ की महत्ता को बताया है।
समय के साथ बदलती परिस्थितियों व आक्रांताओं से
ज्ञान यह केंद्र नष्ट होता रहा। सन 1845 में सिखों
की हार के बाद वर्ष 1846 में कश्मीर का हिस्सा अंग्रेजों के
हाथ में चला गया। जम्मू के राजा गुलाब सिंह द्वारा कश्मीर के हिस्से को अंग्रेजों
से खरीद लेने के साथ ही गिलगित-बाल्टिस्तान का क्षेत्र भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा
हो गया। अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर रियासत के भारत में विलय से
यह भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया। परन्तु भारत की निकटता रूस से अधिक होने के
कारण सोवियत संघ को जोड़ने वाला यह गलियारा बंद करने के लिए ब्रिटिश अधिकारी मेजर
ब्राउन ने विश्वासघात करके महाराजा हरी सिंह के अधिकारी गवर्नर घंसार सिंह को
गिरफ्तार कर गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तानी सेना को कब्जे में दे दिया। गिलगित-बाल्टिस्तान
को खोते ही भारत का सीधा संपर्क अफगानिस्तान से टूट गया और साथ ही उसके रास्ते
ईरान जाने की उम्मीद भी टूटी।
गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। गिलगित-बाल्टिस्तान के रास्ते मध्य एशिया, यूरोप, अफ्रीका सभी जगह सड़क मार्ग से जुड़ता है। गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ जिसका अधिकार होगा उसका पूरे एशिया पर वर्चस्व होगा जिस कारण चीन की बुरी नजर इस पर है। गिलगित-बाल्टिस्तान चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (सीपीईसी) का प्रवेश द्वार है, जो चीन को सीधे हिन्द महासागर से जोड़ता है। परन्तु जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होने के कारण गिलगित-बाल्टिस्तान भी उसके हैं और इसका भारत में विलय का अधिकार भी कानूनी है। इस भय के कारण पाकिस्तान द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान के संवैधानिक दर्जे को बदलकर उसे अंतरिम पाँचवा प्रांत चीन के इशारे पर किया जा रहा है। साथ ही लद्दाख में गलवान घाटी पर हमले के पीछे का कारण चीन सियाचिन ग्लेशियर पर अपना कब्जा जमाना चाहता है जिससे अक्साई चीन और गिलगित-बाल्टिस्तान के बीच भारतीय नियंत्रण भी समाप्त हो जाय। इसीलिए तीन हजार किलोमीटर लम्बे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की इस परियोजना में चीन ने 62 अरब डॉलर का निवेश की योजना बनायी है जो इसके विस्तारवादी नीति का हिस्सा है।
गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। गिलगित-बाल्टिस्तान के रास्ते मध्य एशिया, यूरोप, अफ्रीका सभी जगह सड़क मार्ग से जुड़ता है। गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ जिसका अधिकार होगा उसका पूरे एशिया पर वर्चस्व होगा जिस कारण चीन की बुरी नजर इस पर है। गिलगित-बाल्टिस्तान चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (सीपीईसी) का प्रवेश द्वार है, जो चीन को सीधे हिन्द महासागर से जोड़ता है। परन्तु जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होने के कारण गिलगित-बाल्टिस्तान भी उसके हैं और इसका भारत में विलय का अधिकार भी कानूनी है। इस भय के कारण पाकिस्तान द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान के संवैधानिक दर्जे को बदलकर उसे अंतरिम पाँचवा प्रांत चीन के इशारे पर किया जा रहा है। साथ ही लद्दाख में गलवान घाटी पर हमले के पीछे का कारण चीन सियाचिन ग्लेशियर पर अपना कब्जा जमाना चाहता है जिससे अक्साई चीन और गिलगित-बाल्टिस्तान के बीच भारतीय नियंत्रण भी समाप्त हो जाय। इसीलिए तीन हजार किलोमीटर लम्बे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की इस परियोजना में चीन ने 62 अरब डॉलर का निवेश की योजना बनायी है जो इसके विस्तारवादी नीति का हिस्सा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा
जागरण मंच के लोगों ने एक नारा दिया है कि ‘चीन की सीमा चीन की दीवार, बाकी सब विस्तारवाद-विस्तारवाद। इसकी स्पष्ट झलक गिलगित-बाल्टिस्तान में दिख रहा है
क्योकि इससे होकर गुज़रने वाली इस योजना में इसे कुछ नहीं मिल रहा है। गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। पाकिस्तान की नियति भी कभी गिलगित-बाल्टिस्तान
के लोगों के साथ न्यायसंगत नहीं रही है। पीओजेके व नादर्न एरिया के नाम से प्रसिद्ध
रहा गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तानी संविधान का हिस्सा कभी नहीं रहा बल्कि ‘मिनिस्टरी आफ कश्मीर
अफेयर्स एंड गिलगित-बाल्टिस्तान’ नाम का एक विशेष मंत्रालय
है जिस पर पाकिस्तानी सेना व आईएसआई का कब्जा है। कभी सिल्क रूट में पड़ने वाला यह
क्षेत्र समृद्ध हुआ करता था परन्तु पाकिस्तान के कब्जे में जाने के बाद पिछड़ेपन का
शिकार हो गया। विकास व तरक्की का झूठा ख्वाब दिखाकर पाकिस्तानी सेना व चीन ने लगातार यहाँ के
लोगों का दमन और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया है। अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाले
गिलगित-बाल्टिस्तानियों को गद्दार कहा जाता है। विरोध करने पर लोगों को आतंकवाद के झूठे
आरोपों में बंद कर दिया जाता है। इनकी तीन पीढ़ियां बिना पहचान के गुज़र गयी और
फिर भी भविष्य सुरक्षित नहीं हैं। पिछले 73 वर्षों से पाक अधिकृत
जम्मू-कश्मीर में आजादी का संघर्ष जारी है और वे भारत में शामिल होना चाहते है।
भारत को गिलगित-बाल्टिस्तान व पीओजेके पर अपनी स्थिति को स्पष्ट करके अफगानिस्तान
व मध्य एशिया के साथ पारंपरिक भौगोलिक संपर्क फिर से स्थापित कर अपनी अखंडता को
सुनिशित कर चीन की साजिश को नाकाम करके विकास के मार्ग प्रशत्र करने होंगे।
दक्षिण भारत
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