भारत के विभाजन के बाद एक तरफ नए भारत का स्वागत हो रहा था, तो दूसरी तरफ विभाजन की विभीषिका की चीख-पुकार जो हिंसा, अपहरण, बलात्कार, लूट, धर्म-परिवर्तन के साथ सर-कटी लाशों की अर्थी बनकर रेलडिब्बों के साथ भारत की सीमाओं में पहुँच रही थी। ऐसी हृदय-विदारक घटना आधुनिक विश्व के इतिहास में कहीं और नहीं मिलती। दिल्ली आजादी के जश्न में डूबी थी और पाकिस्तान में बर्बरता को रोकने की मनसा किसी में नहीं थी। हिंदू व सिखों का गुनाहगार रेडक्लिफ की सीमा-रेखा खून से सनी स्थायी और स्मृतियों में जम कर सुख रही थी। लाखों लोग मारे गए तथा करोड़ों विस्थापित हुए और जो पाकिस्तान में फंसकर रह गए उन बच्चियों व परिवारों का अपहरण, बलात्कार, धर्मांतरण और हत्याओं का सिलसिला अभी तक नहीं रुका है। तब हिंदू 21 प्रतिशत थे, अब 2 प्रतिशत शेष है। आज भी भारत में गज़वा-ए-हिंद का सपना लेकर साजिश रचने वालों ने साबित कर दिया कि अभी भारत की सरजमीन पर विभाजन की त्रासदी के अवशेष शेष है। भारत के विभाजन के बाद एक तरफ नए भारत का स्वागत हो रहा था, तो दूसरी तरफ विभाजन...