अखण्ड भारत के अवशेष (15.08.2022)
भारत के विभाजन के बाद एक तरफ नए भारत का स्वागत हो रहा था, तो दूसरी तरफ विभाजन की विभीषिका की चीख-पुकार जो हिंसा, अपहरण, बलात्कार, लूट, धर्म-परिवर्तन के साथ सर-कटी लाशों की अर्थी बनकर रेलडिब्बों के साथ भारत की सीमाओं में पहुँच रही थी। ऐसी हृदय-विदारक घटना आधुनिक विश्व के इतिहास में कहीं और नहीं मिलती। दिल्ली आजादी के जश्न में डूबी थी और पाकिस्तान में बर्बरता को रोकने की मनसा किसी में नहीं थी। हिंदू व सिखों का गुनाहगार रेडक्लिफ की सीमा-रेखा खून से सनी स्थायी और स्मृतियों में जम कर सुख रही थी। लाखों लोग मारे गए तथा करोड़ों विस्थापित हुए और जो पाकिस्तान में फंसकर रह गए उन बच्चियों व परिवारों का अपहरण, बलात्कार, धर्मांतरण और हत्याओं का सिलसिला अभी तक नहीं रुका है। तब हिंदू 21 प्रतिशत थे, अब 2 प्रतिशत शेष है। आज भी भारत में गज़वा-ए-हिंद का सपना लेकर साजिश रचने वालों ने साबित कर दिया कि अभी भारत की सरजमीन पर विभाजन की त्रासदी के अवशेष शेष है।
भारत के विभाजन के बाद एक तरफ नए भारत का स्वागत हो रहा था, तो दूसरी तरफ विभाजन की विभीषिका की चीख-पुकार जो हिंसा, अपहरण, बलात्कार, लूट, धर्म-परिवर्तन के साथ सर-कटी लाशों की अर्थी बनकर रेलडिब्बों के साथ भारत की सीमाओं में पहुँच रही थी। ऐसी हृदय-विदारक घटना आधुनिक विश्व के इतिहास में कहीं और नहीं मिलती। दिल्ली आजादी के जश्न में डूबी थी और पाकिस्तान में बर्बरता को रोकने की मनसा किसी में नहीं थी। हिंदू व सिखों का गुनाहगार रेडक्लिफ की सीमा-रेखा खून से सनी स्थायी और स्मृतियों में जम कर सुख रही थी। लाखों लोग मारे गए तथा करोड़ों विस्थापित हुए और जो पाकिस्तान में फंसकर रह गए उन बच्चियों व परिवारों का अपहरण, बलात्कार, धर्मांतरण और हत्याओं का सिलसिला अभी तक नहीं रुका है। तब हिंदू 21 प्रतिशत थे, अब 2 प्रतिशत शेष है। आज भी भारत में गज़वा-ए-हिंद का सपना लेकर साजिश रचने वालों ने साबित कर दिया कि अभी भारत की सरजमीन पर विभाजन की त्रासदी के अवशेष शेष है। बंटवारे का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकता, जिसने सिर्फ भौगोलिक सीमाओं को ही अलग नहीं किया बल्कि दिलों में घृणा के भाव भर दिए, और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को नफरत की वेदियों के ऊपर चढ़ा दिया। विभाजन के समय बलिदान देने वालों की स्मृतियों को याद कर नई पीढ़ी को जगाना होगा कि किस तरह अंग्रेजों ने धर्म के आधार पर नफरत की बीज बोये और एक देश के तीन टुकड़े कर दिए, जो भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के रूप में है।
अतीत को जानकर ही बेहतर भविष्य की कल्पना की जा सकती है। सन 1857 से 1947 के बीच भारत के सात टुकड़े हुए और 2500 वर्षों में यह 24वां भौगोलिक विभाजन था। जब अखण्ड भारत की बात करते हैं, तो हम व्यापक थे विराट थे, पश्चिम से पूर्व तक विस्तारित थे, किंतु हम बंटकर अनेक बार खंडित हुए और आज के भारत के वर्तमान स्वरूप के रूप में विद्यमान है। नई पीढ़ी अपने अतीत को जानना चाहती है कि अखण्ड भारत में भारत वर्ष की प्रसिद्धि विश्व गुरु के रूप में थी, तथा अंग्रेजों ने लूट की भावना से इसे सोने की चिड़िया की उपाधि दी थी। आजादी के संघर्ष काल में सन 1900 से 1947 के बीच हमने नेपाल (1904), भूटान (1906), तिब्बत (1914), श्रीलंका (1935), म्यांमार (1937), पाकिस्तान (1947), बांग्लादेश (1947) अखंड भारत से टूटकर अस्तित्व में आए थे। इसके बाद पाक अधिकृत कश्मीर (1948) और चीन अधिकृत कश्मीर (1962) के रूप में कश्मीर का हिस्सा भी अलग हो गया। इससे पूर्व अफगानिस्तान को 26 मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि से भारत से तोड़ कर अलग कर दिया गया था। द्वापर, त्रेता आदि कालखण्डों में अखण्ड भारत की अपनी सीमाओं को जानकार अपने पूर्वजों के सामर्थ्य पर गौरव की अनुभूति होती है। हिंदूकुश से अरुणाचल प्रदेश तक, फिर यहां से इंडोनेशिया तक, जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी तक, फिर हिंदूकुश से अरब की खाड़ी तक फैला भू-भाग अखण्ड भारत का हिस्सा था। विष्णु पुराण में कहा गया है कि ‘उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।‘ यानि समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उसकी संतानों को भारती कहते हैं। भारतीय समाज में सनातन काल से चली आ रही सनातन परम्परा संकल्प में अपने भूखंड के बारे में बोलते है कि ‘जम्बू द्वीपे भारतखण्डे आर्याव्रत देशांतर्गते’ से भारत की स्थिति की जानकारी मिलती है। हिमालय, हिंद महासागर, ईरान व इंडोनेशिया के सम्पूर्ण भूभाग को आर्यव्रत के अंतर्गत आते थे। भारत की अखण्डता को विदेशी आक्रांताओं यूनानी, यमन, हुड़, शक, कुषाण, सीरियन, पुर्तगाली, फ़्रेंच, डच, अरब, तुर्क, मुगल, अंग्रेज के भारत वर्ष पर आक्रमण से साबित होता है कि ये सम्पूर्ण भारत वर्ष पर आक्रमण करने आए थे। आज समय और परिस्थितियों के कारण भारत बार-बार खंडित होकर 32.87 लाख वर्ग किमी में सिमट कर रह गया है।
अपनी आजादी के अमृत काल में भारत अपने अतीत को जानकर भविष्य के लिए उत्साहित है और अपने सांस्कृतिक विरासत की सीमाओं की ओर लौटने को आतुर है। यदि बर्लिन की दीवार का गिरना संभव है व 2500 वर्षों से अपमानित हो रहे यहूदियों को अपना स्थान मिल सकता है, एक दूसरे के धुर विरोधी रहे यूरोपीय संघ बना सकते तथा रूस अपने को वर्ष 1991 की पूर्व स्थिति में आने की सोच सकता है, तो भारत जो कि सांस्कृतिक रूप से एक रहा है, बृहद भारत रहा है, जिनके पूर्वज एक रहे है, इसका पुनर्गठन कर फिर से अखण्ड भारत की स्थिति में क्यों नहीं किया जा सकता। वर्तमान समय श्रीलंका, पाकिस्तान अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार अपने बुरे दौर में है, तथा चीन अपनी विस्तारवादी नीति से इनको निगल कर उसकी अस्मिता को नष्ट करने की फिराक लगा हुआ है। विश्व की शांति व भारत की समृद्धि के लिए सांस्कृतिक व भावात्मक रूप से एक परन्तु खंडित हिस्सों को पुनः मूल जड़ों से जोड़ना होगा जो विश्व कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करेगा।
Comments
Post a Comment