भारत-ब्रिटेन: संबंधों के क्रमिक विकास की उम्मीद- हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा (13.07.2024)

भारत–ब्रिटेन के रिश्तों में जटिलताएं भी हैं‚ जिनमें वीजा विनिमयीकरण‚ व्यापार अवरोधों और भू–राजनीतिक गतिशीलता जैसे मुद्दों को सावधानी से प्रबंधित किए जाने की जरूरत है। ब्रिटेन की नई सरकार को घरेलू और विदेशी‚ दोनों ही स्तरों पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। नई सरकार से भारत के साथ संबंधों के क्रमिक विकास की उम्मीद की जा सकती है। भारतीय छात्रों और पेशेवरों के प्रति उदार आव्रजन नीति‚ पर्यावरण के विकास और तकनीकी प्रयोग‚ भारत विरोधी गतिविधि और पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद तथा चीन द्वारा प्रस्तुत परिस्थितियों का मुकाबला करने में भारत को ब्रिटेन से सहयोग की उम्मीद है। पूर्व कराए गए चुनाव के परिणाम ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए विपरीत साबित हुए। 




समय पूर्व कराए गए चुनाव के परिणाम ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए उल्टा साबित हुआ। 14 वर्षों से सत्ता पर काबिज रही कंजर्वेटिव पार्टी को कीर स्टारमर के नेतृत्व की लेबर पार्टी ने ऐतिहासिक मात देते हुए 650 में से 412 सीटें जीती,  जबकि कंजर्वेटिव पार्टी 120 सीट, लिबरल डेमोक्रेट पार्टी 71 तथा रिफॉर्म यूके को चार सीटें मिली, जो क्रमशः 33.9 प्रतिशत, 23.7 प्रतिशत, 12.2 प्रतिशत तथा 14.3 प्रतिशत मत प्राप्त किए। मत प्रतिशत के हिसाब से रिफॉर्म यूके ब्रिटेन की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। ब्रिटेन की सत्ता वर्ष 1979 से कभी कंजर्वेटिव पार्टी तो कभी लेबर पार्टी के हाथों में रही है। परंतु निगेल फराज की पार्टी रिफॉर्म यूके का प्रदर्शन तथा स्कॉटलैंड में स्कॉटिश नेशनल पार्टी की हार ब्रिटिश राजनीति में बदलाव के संकेत करते है। वर्तमान समय में यूरोप में दक्षिणपंथी राजनीति का उभार तेजी से हो रहा है और ऐसा लग रहा था कि यूरोप के दक्षिणपंथ के विपरीत ब्रिटेन वामपंथ की ओर चला गया है, जिसने मध्यमार्गी-वामपंथी वाली लेबर पार्टी को चुना है। परंतु रिफॉर्म यूके की जीत दर्शाती है कि दक्षिणपंथ का आधार ब्रिटेन में व्यापक रूप से मौजूद है

कंजर्वेटिव पार्टी की आंतरिक समस्या, अनुशासन का अभाव, वर्ष 2019 के बाद से सरकार चलाने वाले बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस जैसे प्रधानमंत्री तमाम तरह के आरोपों में घिरे, जनवरी 2020 में यूरोपीय संघ से बाहर निकलने और कोविड के बाद सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को संभालने में पार्टी बुरी तरह नाकाम रही। महंगाई स्वास्थ्य योजनाएं का ठीक से काम नहीं करना, दूसरी तरफ अन्य देशों से आ रहे प्रवासी एक बड़ी समस्या बनते दिख रहे थे। आप्रवासन के मसले पर आक्रामक निगेल फराज की पार्टी रिफॉर्म यूके ने कंजर्वेटिव के वोट हड़पे लिए, जिसके उम्मीदवारों ने सौ से अधिक सीटों पर दूसरे व तीसरे स्थान पर रहकर कंजर्वेटिव पार्टी के उम्मीदवारों को हराने में मुख्य भूमिका निभाई है।

पहले भारत को लेकर लेबर और कंजर्वेटिव पार्टी में मतभेद रहा करते थे। कीर स्टारर के नेतृत्व से पहले, जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में लेबर पार्टी ने भारत-ब्रिटेन संबंधों को काफी तनावपूर्ण बना दिया था। भारत द्वारा अपने संविधान से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद लेबर पार्टी ने 'कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप और संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में जनमत संग्रह' का आह्वान करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव ने की प्रतिक्रिया हुई और वर्ष 2019 के ब्रिटेन के चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 'कश्मीर पर भारत समर्थक या पाकिस्तान समर्थक रुख लेने से बचने' का संकल्प लिया। कीर स्टारमर ने 1930 के दशक से चले आ रहे भारत के प्रति दृष्टिकोण को बदल कर संबंधों को बेहतर बनाने की ओर कदम बढ़ाते हुए स्पष्ट किया कि ब्रिटेन में हिंदूफोबिया के लिए कोई जगह नहीं है और लेबर सरकार भारत के साथ लोकतंत्र और आकांक्षा के साझा मूल्यों पर आधारित संबंध चाहती है। भारत में कोई भी संवैधानिक मुद्दा भारतीय संसद का मामला है और कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, जिसे भारत और पाकिस्तान को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाना चाहिए। उन्होंने अपनी पार्टी के भीतर भारत विरोधी चरमपंथी विचारों पर लगाम लगा दिया तथा घोषणापत्र में भारत के साथ नई रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई। यह प्रतिबद्धता प्रौद्योगिकी, सुरक्षा, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के उनके इरादे को उजागर करती है, जिसका उद्देश्य दुनिया की सबसे तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत के साथ संबंधों को बढ़ाना है।

स्टार्मर के लिए प्रमुख ध्यान इस बात पर होगा कि ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को कैसे पुनर्जीवित किया जाए, अवैध आव्रजन का प्रबंधन किया जाए और घरेलू स्तर पर व्यापार से संबंधित मुद्दों को संबोधित किया जाए। ब्रिटेन आज यूरोपीय संघ से बाहर निकालने के अपने आत्मघाती कदम से जूझ रहा है जिसे वहां के अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा है। जनगणना के अनुसार ब्रिटेन में गैर-ईसाई जनसंख्या बढ़ रही है। अवैध प्रवासन के कारण बढ़ती मुसलमानों की संख्या से ब्रिटिश नाराज हैं। विशेषज्ञता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा पर निर्भर एक गतिशील अर्थव्यवस्था में सांप्रदायिक बंधनों को खत्म करने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं है।

भारत और ब्रिटेन दोनों के द्विपक्षीय संबंध मजबूत और बहुआयामी है, जिसमें व्यापार, अर्थव्यवस्था, रक्षा, सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहित अन्य क्षेत्र शामिल हैं। पिछले कुछ समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को मूर्त रूप देकर संबंधों को मजबूत किए जाने की उम्मीद है। 2004 से ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत के दावे का लगातार समर्थन किया है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के उभरते सामरिक परिदृश्य के परिणामस्वरूप ब्रिटेन का झुकाव हिंद महासागर की ओर हुआ है। यह ब्रिटेन की एकीकृत समीक्षा रिफ्रेश-2023 रणनीति में उल्लिखित है, जो ब्रिटेन के इंडो-पैसिफिक झुकावको मजबूत करता है और नियम-आधारित व्यवस्था का समर्थन करने के लिए भारत जैसे समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ सहयोग पर बल देता है। इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और ब्रिटेन के बीच रणनीतिक साझेदारी बढ़ी है। दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यास, नौसेना संबंध एवं समुद्री क्षेत्र जागरूकता, आतंकवाद-रोधी अभियान, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में सहयोग के जरिये समुद्री क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सबसे सक्रिय यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरने की चाहत और रक्षा खर्च 2030 तक अपनी जीडीपी का 2.5 फीसदी तक बढ़ाने की उम्मीद के साथ खड़ा है। लेबर पार्टी भारत के साथ मिलकर नियम-आधारित व्यवस्था के आधार पर ‘स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत’ को बढ़ावा देने की योजना में है। भारत और ब्रिटेन क्वाड और आकस के संबंधित सदस्यों के पास बीजिंग के प्रभाव का मुकाबला करने की रणनीति पर काम कर रहे है। इसके अलावा साइबर सुरक्षा पर भारत के साथ सहयोग को लेकर भी पार्टी पूरी तरह काम करने को तैयार है।

दोनों देशों के रिश्तों में जटिलताएं भी हैं, जिसमें वीजा विनिमीकरण, व्यापार अवरोधों और भू राजनीतिक गतिशीलता जैसे मुद्दों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जाना चाहिए। ब्रिटेन की नई सरकार को घरेलू और विदेशी दोनों ही स्तरों पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।  अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और ब्रेक्सिट के बाद के परिदृश्य को संभालने से लेकर अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को मजबूत करने और घरेलू चिंताओं को दूर करने तक आगे का कार्य की चुनौती कीर स्टारमर के सामने विरासत में आई है। नई सरकार से भारत के साथ सम्बन्धों के क्रमिक विकास की उम्मीद की जा सकती है। भारतीय छात्रों व पेशेवरों के प्रति उदार आव्रजन नीति, पर्यावरण के विकास के लिए तकनीकी प्रयोग, भारत विरोधी गतिविधि, पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद का मुक़ाबला करने के लिए सहयोग जैसे मुद्दों की चुनौतियों पर भारत को सहयोग की उम्मीद है। 



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