चीन के विस्तारवाद पर शिकंजा (03.05.2022)- दैनिक जागरण
ब्लू इकोनामी पावर बनने के लिए हिंद महासागर पर नियंत्रण आवश्यक है। भारत सरकार द्वारा मेरिटाइम रूट्स एंड कल्चरल लैंडस्केप एक्रॉस दी इंडियन ओशियन (मौसम) की रणनीति की शुरुआत की गयी है। हिंद महासागर के देशों के साथ भारत के पुराने समुद्री रास्तों को फिर से शुरू कर पूर्वी अफ्रीका, अरब, भारतीय उपमहाद्वीप और पूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित कर चीन के विस्तारवादी मंसूबों पर शिकंजा कसने की उम्मीद की जानी चाहिए।
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दैनिक ज्योति- राजस्थान
हजारों वर्षों से हिंद महासागरीय परिक्षेत्र व्यापार, सुरक्षा, उपनिवेशन और भारतीय संस्कृति के प्रभाव में रहे है। प्रथम
शदी में इजिप्त के प्राचीन बंदरगाह बेरेनिके की चल रही खुदाई में भारत से
व्यापारिक संबंधों के प्रमाण मिले है तथा भारत का समुद्री वर्चस्व ब्रिटेन के भारत
आगमन तक रहा है, जिसे अठारहवीं व उन्नीसवीं शदी में नष्ट कर ब्रिटेन सामरिक
महत्व के सभी स्थानों पर नौसैनिक अड्डे बनाकर विश्व की महाशक्ति बना और हिंद
महासागर के परिक्षेत्र पर शासन करता रहा है। हिंद महासागर की भौगोलिक स्थिति यहां
के समुद्री मार्ग सामरिक महत्व के मुख्य पहलू है। साथ ही प्रचुर मात्रा में
प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता व खनिज तेल के विशाल भंडार भू-राजनीतिक संकट को
जन्म देते है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद औपनिवेशिक देशों के स्वतंत्र होने तथा ब्रिटेन की कमजोर स्थिति ने हिंद महासागर में शक्ति शून्यता की स्थिति पैदा कर दी। संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के बीच प्रतिद्वंद्विता से पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक सामरिक महत्व के नौसैनिक अड्डे बनाये गए। परन्तु वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन से उत्पन्न अस्थिरता का लाभ उठाकर एशिया व अफ्रीका में अपनी पैठ के बल पर चीन सुपर पावर बनने के सपने देखने लगा। इसके निमित्त चीन दक्षिण चीन सागर में अपनी सैन्य शक्ति का धौंस दिखाकर काल्पनिक नाइन डैश लाइन के सहारे द्वीपों पर कब्जे, कृत्रिम द्वीपों के निर्माण और पर्यावरण के विरुद्ध कार्य कर सैन्य अड्डे बना लिए है। हिंद महासागरीय देशों में डेट-ट्रैप की नीति अपनाकर कर्ज न चुका पाने वाले देशों के संसाधनों व बंदरगाहों पर कब्जे कर सैन्य अड्डे स्थापित करने में लगा है, जो वर्षों पूर्व स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स के नाम से चीन के खतरनाक इरादों को बताता है, परन्तु भारत ने चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर नकेल कसने के लिए बड़े स्तर के सैन्य बेस की रणनीति बनायी है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद औपनिवेशिक देशों के स्वतंत्र होने तथा ब्रिटेन की कमजोर स्थिति ने हिंद महासागर में शक्ति शून्यता की स्थिति पैदा कर दी। संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ के बीच प्रतिद्वंद्विता से पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक सामरिक महत्व के नौसैनिक अड्डे बनाये गए। परन्तु वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन से उत्पन्न अस्थिरता का लाभ उठाकर एशिया व अफ्रीका में अपनी पैठ के बल पर चीन सुपर पावर बनने के सपने देखने लगा। इसके निमित्त चीन दक्षिण चीन सागर में अपनी सैन्य शक्ति का धौंस दिखाकर काल्पनिक नाइन डैश लाइन के सहारे द्वीपों पर कब्जे, कृत्रिम द्वीपों के निर्माण और पर्यावरण के विरुद्ध कार्य कर सैन्य अड्डे बना लिए है। हिंद महासागरीय देशों में डेट-ट्रैप की नीति अपनाकर कर्ज न चुका पाने वाले देशों के संसाधनों व बंदरगाहों पर कब्जे कर सैन्य अड्डे स्थापित करने में लगा है, जो वर्षों पूर्व स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स के नाम से चीन के खतरनाक इरादों को बताता है, परन्तु भारत ने चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर नकेल कसने के लिए बड़े स्तर के सैन्य बेस की रणनीति बनायी है।
अरब सागर में चीन
पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर
कब्जे कर सैन्य अड्डा बना चुका है। चीन के इस साजिश को प्रभावहीन करने के लिए ईरान
के चाहबहार बंदरगाह पर पहले से ही व्यावसायिक पहुंच होने के साथ ही भारत ओमान की
खाड़ी में वर्ष 2018 से दुकम बंदरगाह पर सैन्य
अड्डे स्थापित कर लिया है तथा एक पनडुब्बी,
नेवी की एक शिप आईएनएस मुंबई और दो सर्विलांस एयरक्राफ्ट पी-8 आई निगरानी विमान की
तैनाती भी कर दी गयी है। भारत-ओमान सैन्य
सहयोग समिति की दसवीं बैठक 30 जनवरी से 03 फरवरी 2022 के बीच भारत
में सम्पन्न हो चुका है। चीन जिबूती को कर्ज जाल में फांसकर सैन्य अड्डे बना चुका
है और मेडागास्कर के उत्तर-पश्चिम में जनवरी 2022 में वांग यी की यात्रा का
उद्देश्य कामरोस द्वीप समूह में सैन्य अड्डे बनाना ही है। परन्तु भारत का पहले से ही दक्षिण-पश्चिम
हिंद महासागर व मोजाम्बिक चेनेल पर निगरानी के लिए मारीशस के अगालेगा द्वीप पर सैन्य-अड्डा है। सेशेल्स द्वीप समूह के असेम्प्शन द्वीप पर भारत 550 मिलियन डॉलर से सैन्य-अड्डा बना रहा है और
चीन की बढ़ती आक्रामकता की पृष्ठभूमि में सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए 21 से 31
मार्च 2022 तक सेशेल्य डिफेंस एकेडमी के साथ दस दिवसीय नौवाँ संस्करण लामितिए-2022
सैन्य अभ्यास भी किया गया है। हॉर्न ऑफ अफ्रीका के देशों की हिंद महासागर में अवस्थिति
का लाभ चीन भारत को घेरने के लिए करना चाहता है। हालांकि अफ्रीकी देश चीन की कर्ज-जाल
की साजिश को समझने लगे है, जो भारत
को एक अवसर प्रदान करता है। मालदीव का फेयधुफिनोल्हु द्वीप पर चीन का सैन्य अड्डा
है और इंडिया आउट कैम्पेन की साजिश कर रहा था,
परन्तु मालदीव की सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर भारत की सैन्य
उपस्थिति के साथ मालदीव की नौसेना को प्रशिक्षित करने की योजना भी बना चुका है।
इसी प्रकार बंगाल की खाड़ी में श्रीलंका के हंबनटोटा
व म्यांमार के क्यौकप्यू द्वीप पर चीन
का सैन्य अड्डा है। चटगांव बंदरगाह में चीन को रोकने और युद्ध की परिस्थिति में सिलीगुड़ी
कारिडोर के बंद होने की संभावना में विकल्प मार्ग के रूप सामरिक रूप से महत्वपूर्ण
कालादान मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट पूरा किया जा रहा है। कोलकाता से
म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह और
पूर्वोत्तर राज्यों तक के रास्ते को भारत के ही खर्चे पर मूर्त्त रूप दिया जा रहा
है। इस बीच भारतीय हितों के
संदर्भ में एक और अच्छी बात यह हुई है कि बांग्लादेश अपने चटगांव बंदरगाह के
माध्यम से भारत के पूर्वोत्तर हिस्सों तक वस्तुओं की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए
इसके इस्तेमाल को मंजूरी दे चुका है, जहां बांग्लादेश का 80 प्रतिशत व्यापार होता है। भारत अपनी तटीय उदासीनता के कारण वर्ष 1950 में कोको
द्वीप समूह म्यांमार को दे दिया, जिसे वर्ष 1994 में चीन ने उसे हथियाकर अपना सैनिक
अड्डा बना लिया, जो भारत के पूर्वी तट पर भारत के मिसाइल परीक्षण व
उपग्रह प्रक्षेपण के कारण सुरक्षा के लिए चुनौती बना हुआ है। परन्तु अंडमान-निकोबार
द्वीप समूह में थियेटर कमांड की उपस्थिति से कोको द्वीप पर चीन की सैन्य गतिविधियों
पर नियंत्रण रखना आसान हुआ है।
मलक्का
जलसन्धि के रास्ते लगभग 60 प्रतिशत से अधिक खनिज तेल आयात और अपने उत्पाद के
निर्यात का मार्ग होने के कारण यह चीन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मलक्का
जलसंधि के पास सामरिक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण ग्रेटर निकोबार के ताइयंघ को
पोर्ट शहर के रूप में विकसित कर भारत सामरिक रूप से बहुत शक्तिशाली हो जाएगा, जिसके विकास के लिए अगस्त 2020 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा 75 हजार
करोड़ रुपए की घोषणा की गयी है। साथ ही हंबनटोटा व सिंगापुर के विकल्प के रूप में
विकसित होने की अवस्थिति भी है। यह शिपयार्ड बिल्डिंग पोर्ट के रूप में विकसित होकर
चटगांव का विकल्प भी बन सकता है। चीन द्वारा इन्डोनेशिया के सुंडा जलसंधि के वैकल्पिक
मार्ग पर भी नकेल कसने के लिए आस्ट्रेलिया से कोकोज द्वीप समूह पर सैन्य समझौता भी
है। समुद्र में अपनी रेत की महान दीवार के विस्तारवादी मंसूबों के गिरने के भय से चीन
अपनी ऊर्जा निर्भरता के लिए विकल्प मार्ग के रूप में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
(सीपीईसी) पर 62 अरब डालर खर्च कर सीधे ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से हिंद महासागर से
जुड़ना चाहता है,
जहां दुकम बंदरगाह पर भारत की सेना पहले से तैयार बैठी है।
ब्लू इकोनामी पावर बनने के लिए हिंद महासागर पर
नियंत्रण आवश्यक है। भारत सरकार द्वारा मेरिटाइम रूट्स एंड कल्चरल लैंडस्केप एक्रॉस दी इंडियन
ओशियन (मौसम) की रणनीति की शुरुआत की गयी है। हिंद महासागर के देशों के साथ भारत के
पुराने समुद्री रास्तों को फिर से शुरू कर पूर्वी अफ्रीका, अरब, भारतीय
उपमहाद्वीप और पूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को
पुनर्जीवित कर चीन के विस्तारवादी मंसूबों पर शिकंजा कसने की उम्मीद की जानी
चाहिए।
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