मध्यस्थ की भूमिका में भारत- दैनिक जागरण (10.06.2022)
रूस के
शक्ति सम्पन्न होने पर सोवियत संघ को पुनर्गठित करने की आकांक्षा ने रूस-यूक्रेन
युद्ध को जन्म दिया, जिसने सम्पूर्ण
विश्व को एक बार फिर से दो धुरी बनने की ओर विवश कर दिया है। एक तरफ अमेरिका के
साथ पश्चिमी देश हैं तो दूसरी ओर चीन व रूस। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर चीन के
आक्रामक होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। चीन दक्षिणी चीन सागर पर अपने अधिकार का
दावा कर उस पर कब्जे की फिराक में है, साथ ही
हिंद महासागरीय देशों को कर्ज के जाल में फांसकर उसके महत्वपूर्ण बंदरगाहों पर
कब्जे कर सैन्य गतिविधियों में संलिप्त है। अफ्रीका महाद्वीप के 54 देशों में से
32 देशों को लगभग 148 बिलियन डॉलर कर्ज देकर अपनी साजिश का शिकार बना चुका है, जहां 2010 से प्रत्येक वर्ष 70 नयी
परियोजनाओं को जोड़ते जा रहा है। इसमें ज्यादेतर पश्चिमी हिंद महासागर से लगे देश
है, जो कर्ज न
चुका पाने की स्थिति में चीन के उपनिवेश बनने की ओर अग्रसर है। अब वह प्रशांत
द्वीपीय देशों पर कब्जे कर सैन्य बेस की साजिश में लगा हुआ है।
चीन की स्थलीय सीमा से जुड़े देशों के लिए जनवरी 2022 से लागू भूमि सीमा
कानून के अनुसार जिस जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया है वहां से हटाने का अर्थ कानून
को तोड़ना है, जो चीन अखंडता से जोड़ दिया गया है। हालांकि चीन की वास्तविक सीमा चीन की
महान दीवार है, इसके अतिरिक्त सभी चीन के विस्तारवाद का ही परिणाम है। अपनी अर्थव्यवस्था को
ब्लू इकॉनामी में बदलने के लिए चीन समुद्र में रेत की महान दीवार बनाकर अपने
विस्तारवादी मंसूबों को कामयाब करना चाहता है। इसके लिए दक्षिण
एशिया में श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश
के साथ नेपाल व भूटान के साथ मालदीव का अस्तित्व चीन के कारण खतरे में है। चीन के कर्ज-जाल से बदहाल हो चुके
श्रीलंका को भारत पर भरोसा है। बलूच व सिंधियों के
आंदोलन से बढ़ते असंतोष ने
पाकिस्तान के तीन खंड में विखंडित होने की आशंका वहां के पूर्व-प्रधानमंत्री इमरान
खान पहले ही बता चुके है। अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद वह दूसरे देशों
की अनुकम्पा पर निर्भर है और चीन की उपस्थिति बेल्ट एंड रोड, एनक कॉपर माइन, लिथियम व ऊर्जा
कारणों से है, परन्तु भारत के मानवीय कार्यों प्रभावित रहा तालिबान भारत के साथ अपने
रिस्ते मजबूत करना चाहता है। मालदीव में चीन की
साजिश को वहां की सरकार ने प्रतिबंधित कर भारतीय नौसेना को मालदीव में प्रशिक्षण
के लिए अनुरोध किया है। बांग्लादेश ने चीन की उपस्थिति को लार्ड क्लाइव की तरह
बंगाल को लूटे जाने के भय तथा भारत की शक्ति व नियत पर भरोसा करते हुए चटगांव के
प्रयोग की अनुमति भारत को दे दी, जिससे चीन
की वर्षों की साजिश नाकाम हो गई। म्यांमार में चीन की विस्तारवादी गतिविधियों पर भारत
नजर बनाए हुए है। इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व
एशिया के देशों (ब्रूनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, लाओस,
थाईलैंड, पूर्वी-तिमोर और वियतनाम) की सीमाओं पर
अतिक्रमण की स्थिति व दक्षिणी चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों के निर्माण व सैन्य
अड्डों ने सम्पूर्ण क्षेत्र को अस्थिर कर दिया है। जिबूती में सैन्य उपस्थिति के
बाद जनवरी 2022 में इरिट्रिया, केन्या के साथ मेडागास्कर के उत्तर-पश्चिम में कोमोरोस द्वीप पर वांग
यी की यात्रा का उद्देश्य पश्चिमी हिंद महासागर तथा उससे लगे देशों को कर्ज-जाल की साजिश से विस्तारवाद
को बढ़ावा देना है। प्रशांत द्वीपीय देश 14 राज्यों का समूह है जो
एशिया, ऑस्ट्रेलिया और
अमेरिका के बीच प्रशांत महासागर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से संबंधित है, जिसमें कुक आइलैंड्स, फिज़ी, किरिबाती, रिपब्लिक ऑफ मार्शल आइलैंड्स, फेडरेटेड स्टेट्स ऑफ
माइक्रोनेशिया, नाउरू, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा, तुवालु और वानुअतु शामिल हैं।
चीन अपने सुपर बनने के सपने
को साकार करने के लिए इनके मार्गों पर अधिकार व सैन्य गतिविधि की साजिश वाली यह
यात्रा असफल साबित हुई। इन क्षेत्रों में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए भारत
ने फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक कोऑपरेशन का गठन वर्ष 2014 में किया था। इसी प्रकार लम्बे समय
से असेम्प्शन द्वीप में चीन की साजिश नाकाम हुई और सेशेल्स ने भारत पर भरोसा जताते
हुए सैन्य बेस की अनुमति दे दी है।
आज सम्पूर्ण विश्व अपने हित को लेकर दो
खेमे में बंट जाने के बाद अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा व संप्रभुता को लेकर खतरे का
अनुभव कर रहे है। परन्तु भारत अपने स्वतंत्र विचार के साथ किसी धुरी में न होकर
अपनी जमीन पर विश्व की आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, जो किसी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में नहीं
है। चीन की विस्तारवादी नीति की आक्रामकता से दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया के देश
भारत के नेतृत्व में साथ आने चाहते है। हिंद महासागरीय क्षेत्र शदियों से भारत के
व्यापारिक व सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र रहे हैं, परन्तु
भारत कभी भी आक्रामक नहीं रहा और कोरोना संकट काल में विश्व ने भारत की सनातन
परम्परा को अनुभव किया और आकर्षित हुआ। इसी कारण आज अमेरिका सहित पश्चिमी देश, रूस भारत को विश्व मध्यस्थता व समाधान के
वैश्विक केंद्र के रूप में देख रहे है।
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