चीनी आक्रामकता के विरुद्ध भारतीय रणनीति- दैनिक जागरण- राष्ट्रीय संकरण (14.11.2022)

हिंद महासागरीय क्षेत्र, जो भारत के लिए भू-सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, वह चीन के विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं की कुंजी है। इसके लिए कर्ज जाल की नीति से लेकर आक्रामक धमकियों तक की रणनीति अपनाता रहा है। श्रीलंका से हंबनटोटा बंदरगाह, कोको द्वीप व क्यौकप्यू द्वीप (म्यांमार) पर कब्जे में सफल भी हो चुका है। परन्तु चटगांव बंदरगाह में बांग्लादेश ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया तथा ग्वादर बंदरगाह में बलूचियों के विरोध ने चीन को रोक रखा है, जिसका रास्ता पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है, जो भारत का संप्रभु भू-भाग है। यह चीन के शिंजियांग उईगुर स्वायत्त क्षेत्र में काशगर से ग्वादर बंदरगाह तक का 3000 किमी की चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना है, जो चीन को सीधे हिंद महासागर तक जोड़ सकती है। इसके लिए ही चीन ने गलवान घाटी में मई 2020 में गतिरोध भी पैदा कर दिया था। अभी 10 नवंबर को जारी की गयी रिपोर्ट ‘हिमालय में बढ़ते तनाव: भारतीय सीमा पर चीनी घुसपैठ का भू-स्थानिक विश्लेषण' विषय पर नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, नीदरलैंड्स के डेल्फ्ट के तकनीकी विश्वविद्यालय और नीदरलैंड्स डिफेंस एकेडमी के विशेषज्ञों ने मूल डाटासेट का उपयोग करते हुए पिछले 15 वर्षों के दौरान हुए चीनी घुसपैठ घटनाक्रम का भू-स्थानिक विश्लेषण कर घुसपैठ को चीन की सोची समझी रणनीति का हिस्सा बताया है। 
 












चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल के बढ़ने के साथ सेना को और आधुनिक बनाने के लिए ठोस कार्यवाई का निर्देश देना तथा गलवान घाटी में हुए भारतीय सैनिकों के साथ झड़प का क्लिप दिखाकर भारत के प्रति अपनी आक्रामक नियति का प्रदर्शन करना इस बात को स्पष्ट करता है कि भारत चीन के विस्तारवादी मंसूबों का बाधक है। जनवरी 2022 से चीन ने भूमि सीमा कानून को लागू कर चीन के कब्जे वाली सम्पूर्ण भूमि की सीमाओं को अपनी अखंडता से जोड़ चुका है और उन सीमाओं का अतिक्रमण का मतलब चीन से युद्ध है। सैनिकों को लड़ने व जीतने के लिए युद्ध की तैयारियों के लिए प्रशिक्षण के माध्यम से सेना को अपनी सारी ऊर्जा लगा देने तथा सेना की क्षमता व संसाधनों को विकसित करने की योजना बना चुका है। इसके लिए 20वीं सीपीसी राष्ट्रीय कांग्रेस के मार्गदर्शक सिद्धांतों का पूरी तरह से अध्ययन, उनका प्रचार और कार्यान्वयन करने तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ संप्रभुता और विकास हितों की रक्षा करने का निर्देश दिया गया है, जो भारत सहित लोकतान्त्रिक देशों के लिए चिंतनीय है। क्योंकि चीन की दीवार ही चीन की वास्तविक सीमा है, इसके अतिरिक्त शेष सभी विस्तारवाद का ही परिणाम है। 20वीं कांग्रेस के पूर्व चीन के शिंगहुआ विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर इंटरनेशनल सिक्यूरिटी एंड स्ट्रैटिजी के फ़ेलो झूबो ने चीन की आक्रामक नियति को प्रदर्शित करते हुए कहा कि अगर भारत हिंद महासागर को महान समुद्र मानते हुए उसकी सुरक्षा की भूमिका में आने का प्रयास करता है तो चीन के साथ टकराव की स्थिति से अधिक युद्ध की परिस्थिति भी खड़ी हो सकती है। इसके साथ ही स्पष्ट हो जाता है कि हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक चीन की साजिश को कामयाब होने में सबसे बड़ा रोधक भारत को ही मानता है।
चूंकि भारत की स्थिति हिंद महासागर के शीर्ष पर होने के कारण यह आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, परन्तु चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं के माध्यम से स्थलीय व समुद्री मार्गों पर नियंत्रण के आवेश में भारत की संप्रभुता व अखंडता को चोट पहुंचा कर विश्व की महाशक्ति बनने के सपने देख रहा है। जबकि भारत की तट रेखा समस्त हिंद महासागर द्वारा निर्मित होती है तथा तट रेखा का 14 प्रतिशत भाग भारत के अधिकार में है। इसी प्रकार लगभग 1250 द्वीपों के साथ हिंद महासागरीय क्षेत्र की लगभग आधी जनसंख्या भारत में रहती है, जो हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति का संवाहक रहा है। भारत का 90 प्रतिशत समुद्री व्यापार, घरेलू उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत खनिज तेल तथा आयातित खनिज तेल का सम्पूर्ण भाग हिंद महासागर के माध्यम से प्राप्त होता है। भविष्य में ऊर्जा जरूरतों तथा स्वच्छ ईधन के लिए आवश्यक विकल्पों के रूप में तरंग ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, मीथेन क्लैथरेट्स, ड्यूटीरियम एवं ट्रिटियम के भंडार भी हिंद महासागर से प्राप्त होने की संभावना है। 
हिंद महासागरीय क्षेत्र, जो भारत के लिए भू-सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, वह चीन के विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं की कुंजी है। इसके लिए कर्ज जाल की नीति से लेकर आक्रामक धमकियों तक की रणनीति अपनाता रहा है। श्रीलंका से हंबनटोटा बंदरगाह, कोको द्वीप व क्यौकप्यू द्वीप (म्यांमार) पर कब्जे में सफल भी हो चुका है। परन्तु चटगांव बंदरगाह में बांग्लादेश ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया तथा ग्वादर बंदरगाह में बलूचियों के विरोध ने चीन को रोक रखा है, जिसका रास्ता पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है, जो भारत का संप्रभु भू-भाग है। यह चीन के शिंजियांग उईगुर स्वायत्त क्षेत्र में काशगर से ग्वादर बंदरगाह तक का 3000 किमी की चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना है, जो चीन को सीधे हिंद महासागर तक जोड़ सकती है। इसके लिए ही चीन ने गलवान घाटी में मई 2020 में गतिरोध भी पैदा कर दिया था। अभी 10 नवंबर को जारी की गयी रिपोर्ट ‘हिमालय में बढ़ते तनाव: भारतीय सीमा पर चीनी घुसपैठ का भू-स्थानिक विश्लेषण' विषय पर नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, नीदरलैंड्स के डेल्फ्ट के तकनीकी विश्वविद्यालय और नीदरलैंड्स डिफेंस एकेडमी के विशेषज्ञों ने मूल डाटासेट का उपयोग करते हुए पिछले 15 वर्षों के दौरान हुए चीनी घुसपैठ घटनाक्रम का भू-स्थानिक विश्लेषण कर घुसपैठ को चीन की सोची समझी रणनीति का हिस्सा बताया है।  
इसी प्रकार आक्रामक, गैर-पारदर्शी तरीके से अपने विस्तारवादी नीति के तहत चीन वैश्विक महाशक्ति के शीर्ष पर पहुंचने के लिए प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में अमेरिका के सुरक्षा कवच को भी तोड़ना चाहता है, जिसकी महत्वपूर्ण एक कड़ी के रूप में ताइवान की अवस्थिति है। चीन प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में अपना विस्तार करने के साथ ही हिंद- प्रशांत क्षेत्र में समुद्री मार्गों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है। चीन ने ताइवान व अन्य देशों के साथ बढ़ते तनाव को देखते हुए सेना को आदेश दे चुका है कि युद्ध की स्थिति कभी भी बन सकती है। चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों के बीच इस प्रकार का बयान आना नए अंतरराष्ट्रीय संकट को दर्शाता है। 
दक्षिण-पूर्व एशियाई देश सामर्थवान नहीं होने के कारण चीन से डरे हुए है। समुद्री रास्तों में अवस्थित ताइवान पर कब्जे के बाद चीन हिमालय में स्थित लद्दाख को पाने के लिए युद्ध की स्थिति खड़ा कर सकता है। इन परिस्थितियों से निपटने के लिए भारत-चीन तनाव के बीच चीन से लगने वाली वास्‍तविक नियंत्रण रेखा के पास भारत और अमेरिका युद्धाभ्यास कारगर साबित होंगे, जो 15 नवंबर से 2 दिसंबर तक चीन सीमा से 100 किमी दूर उत्‍तराखंड के औली के पास होगा। इसी प्रकार पूर्वी चीन सागर में क्वाड देशों के साथ भारत मालाबार अभ्यास जापान के योकोशुका में 08 से शुरू होकर 18 नवंबर तक होना है। भारत ऑस्‍ट्रेलिया के साथ 28 नवंबर से 11 दिसंबर तक 'ऑस्‍ट्रा-हिंद' इन्‍फैंट्री कॉम्‍बैट युद्धाभ्यास होगा। ये युद्धाभ्यास चीन की आक्रामकता व उसके बढ़ते सैन्य प्रभुत्व को चुनौती देने का संकेत है।  
चीन को सीमित करने के लिए क्वाड, ऑकस, हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा जैसे संगठन बनाने गए है, परन्तु चीन की सैन्य तैयारियों और उसकी चुनौतियों से निपटने के लिए एक प्रभावशाली सैन्य संगठन की आवश्यकता प्रतीत हो रही है। इसलिए अब आवश्यक हो गया है कि हिमालय-हिन्द महासागर परिक्षेत्र के परंपरावादी, सांस्कृतिक व आर्थिक गतिविधियों से जुड़े कुल 46 देश को संगठित कर प्रशांत महासागरीय क्षेत्र तक अपनी क्षेत्रीय ताकत को मजबूत बनाने की जरूरत है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश चीन की विस्तारवादी प्रवृति से डरे हुए है और भारत की ओर उम्मीद की नजर से देख रहे है।








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