वैश्विक परिदृश्य में भारत-अमेरिका संबंध, स्वदेश ग्वालियर समूह (01.07.2023)
भारत के प्रधानमंत्री की पहली अमेरिकी राजकीय यात्रा में व्हाइट हाउस की आसपास लहराते तिरंगे बया कर रहे थे कि भारत-अमेरिका संबंधों की एक नई और शानदार शुरूआत हो गई है। विश्व के दो महान लोकतंत्रों को दुनिया को बेहतर बनाने के लिए अपने संबंधों को मजबूत करते देख रही है। निवेश, रक्षा, तकनीकी, रोजगार, और आतंकवाद जैसे मुद्दो पर हुए समझौते 21वीं के ऐतिहासिक क्षण है। नई तकनीकी को डिजाइन व विकसित करने के लिए साथ मिलकर काम करने से लोगों के जीवन में बदलाव आएगा। चीन पर दुनिया की निर्भरता को कम करने के लिए महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए भारत एक विकल्प के तौर पर मौजूद है, जहां बड़ी संख्या में लोग तकनीकी के हस्तांतरण को अपनाने के लिए प्रशिक्षित है, इसलिए 21वीं शदी में भारत-अमेरिका के संबंध विश्व को दिशा देने में एक महत्वपूर्ण कारक साबित होने वाले है।
दुनिया बदल रही है, नए गठबंधन बन रहे हैं, और बदलते समीकरणों के युग में भारत और अमेरिका एक दूसरे के निकट आ रहे हैं। यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देश भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करते रहें कि भारत रूस के खिलाफ व पश्चिमी देशों के साथ खड़ा हो जाए, परंतु भारत किसी खेमे में शामिल नहीं हुआ और तटस्थ भी नहीं रहा, बल्कि शांति का पक्षधर है। यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका व पश्चिमी देशों के रूस पर लगाए प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति श्रृंखला के प्रभावित होने से डिफेन्स डील पर जरूर प्रभाव पड़ा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार वर्ष 2017 में भारत ने रूस से कुल 62 प्रतिशत हथियार खरीदा था, जो 2022 में घटकर 45 प्रतिशत हो गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़े रूस को चीन का साथ मिला तथा हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण अमेरिका भारत के रणनीतिक रूप से निकट आने लगा। इसी का परिणाम है कि रूस से कच्चे तेल का आयात जारी रखने के बाद भी अमेरिका ने भारत के प्रधानमंत्री को राजकीय यात्रा पर निमंत्रित किया, जो निश्चित ही ऐतिहासिक रूप से सर्वाधिक सुदृढ़, गतिशील तथा निकट भारत-अमेरिका संबंध इसके पहले कभी इस स्तर पर नहीं रहे।
चीन की बढ़ती आक्रामक विस्तारवादी नीतियां तथा रूस के साथ उसकी निकटता से उपजी भू-राजनीतिक परिस्थितियां अमेरिका के एकल वैश्विक नेतृत्व को चुनौती दे रही है। अमेरिका को अपनी स्थिति बरकरार रखने तथा चीन पर नियंत्रण के लिए भारत का साथ जरूरी है। चीन व रूस को छोड़कर विश्व के लगभग सभी शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के साथ जुड़े हैं, जबकि भारत की अपनी रणनीतिक स्वायतत्ता है। अब यदि भारत अमेरिका के साथ आता है तो चीन की चुनौती का सामना करने में अमेरिकी समृद्ध हो जाएगा। साथ ही आतंकवाद, महामारी, जलवायु जैसी समस्याओं को सुलझाने में भारत का योगदान भी महत्वपूर्ण रहने वाला है। आज भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश के साथ पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो आगामी कुछ वर्षों में तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा।
भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा पर भारत तकनीकी हस्तांतरण, रक्षा खरीदारी, अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण, उपग्रह परीक्षण, अंतरिक्ष में विज्ञान व तकनीकी में हिस्सेदारी के साथ दूसरे तकनीक के क्षेत्रों जैसे क्वांटम, सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स में भी सह-भागीदारी भविष्य में भारत को आत्मनिर्भर होने में मदद करने वाली है। भारत-अमेरिका संबंध केवल एक दूसरे से फायदा लेने के लिए नहीं है, बल्कि विश्व के साथ हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र को प्रभावित करने वाला है, जो दोनों देशों की सुरक्षा व समृद्धि के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही चीन की सैन्य शक्ति का बढ़ता प्रभाव भी भारत और अमेरिका के बीच निकटता व सहयोग बढ़ाने का काम किया है। भारत अमेरिका, चीन व रूस के बीच उभरता हुआ शक्ति संतुलन भी है, जिसको अपने पक्ष में करने की होड़ लगी हुई है।
शीत युद्ध के दौर में भारत अमेरिका के संबंध न्यून स्तर पर थे, किन्तु चीन की महत्वाकांक्षाओं के कारण व्यापारिक संबंध रणनीतिक होने लगे। इसी का परिणाम था कि वर्ष 2002 में सैन्य सूचना समझौता हुआ तथा 2005 में अमेरिका भारत रक्षा संबंधों की नई रूपरेखा तैयार की गई, जिससे रक्षा व प्रौद्योगिकी के रास्ते खुले गए। 2008 में असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद से अमेरिका-भारत संबंध रणनीतिक साझेदारी के रूप में शुरू हो गयी, जो आम तौर पर उच्च स्तर के रक्षा सहयोग और खुफिया साझाकरण, सहयोग के बहुमुखी आयाम, व्यापक आधार पर राजनीतिक समर्थन और स्थिरता के रूप में रहा है। 2012 में रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल पर हस्ताक्षर किए गए। हिंद-प्रशांत क्षेत्र भू-राजनीतिक व आर्थिक रूप से उभरता हुआ केंद्र है, जिसकी शांति व सुरक्षा भारत व अमेरिका दोनों की जरूरत है। प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व तथा भारत की चिंताओं के कारण 2018 में अमेरिका ने प्रशांत कमांड क्षेत्र का नाम हिंद-प्रशांत कमांड क्षेत्र कर अपनी रणनीतिक सक्रियता बढ़ा दी।
वर्तमान समय में यूरोप में युद्ध की स्थिति है तथा एशिया शीत युद्ध से गिरा है। अमेरिका एकध्रुवीय विश्व बनाए रखने के लिए रणनीति तैयार कर रहा है। चीन बहुध्रुवीय विश्व व एकध्रुवीय एशिया के सपने देख रहा है, जहां अमेरिका चीन के साथ एक शीत युद्ध में शामिल हैं। व्यापारिक खतरे को समझते हुए चीन से फैक्ट्रियों को दूर ले जाने की बात हो या सेमीकंडक्टर के उत्पादन के साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र की निगरानी इन सभी में अमेरिका को निश्चित रूप से भारत के समर्थन की आवश्यकता है। भारत का स्वच्छ ऊर्जा शक्ति में आत्मनिर्भर बनना चीन के ऊर्जा सप्लाई चैन से बेहतर विकल्प है और यह विश्व जलवायु के लिए उपयुक्त भी होगा। यूक्रेन युद्ध के कारण रूस, चीन, ईरान, तुर्की, उत्तरी कोरिया, सऊदी अरब अमेरिका के विरोधी खेमे में शामिल हो जाने से भारत अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। पिछली शताब्दी के नौवें दशक में चीन भी ऐसी ही अनुकूल परिस्थितियों में अमेरिका से संबंधों का लाभ उठाकर आज विश्व की दूसरी बड़ी महाशक्ति बन गया। आज वह अमेरिका को चुनौती दे रहा है तथा भारत को चारों तरफ से घेरकर अपनी विस्तारवादी नीति से आगे बढ़ना चाहता है। चीन द्वारा प्रस्तुत की गयी चुनौतियाँ सिर्फ सीमाओं तक सीमित न होकर क्षेत्र में व्यापक स्तर पर मौजूद है। चीन को रोकने के लिए भारत को एक आर्थिक शक्ति बन कर उभरना पड़ेगा और सैन्य क्षमता को मजबूत करना इसका एक बड़ा हिस्सा है, जो एशिया व हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उसके लिए अमेरिका और यूरोप से निवेश व तकनीकी की आवश्यकता है।
भारत के प्रधानमंत्री की पहली अमेरिकी राजकीय यात्रा में व्हाइट हाउस की आसपास लहराते तिरंगे बया कर रहे थे कि भारत-अमेरिका संबंधों की एक नई और शानदार शुरूआत हो गई है। विश्व के दो महान लोकतंत्रों को दुनिया को बेहतर बनाने के लिए अपने संबंधों को मजबूत करते देख रही है। निवेश, रक्षा, तकनीकी, रोजगार, और आतंकवाद जैसे मुद्दो पर हुए समझौते 21वीं के ऐतिहासिक क्षण है। नई तकनीकी को डिजाइन व विकसित करने के लिए साथ मिलकर काम करने से लोगों के जीवन में बदलाव आएगा। चीन पर दुनिया की निर्भरता को कम करने के लिए महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए भारत एक विकल्प के तौर पर मौजूद है, जहां बड़ी संख्या में लोग तकनीकी के हस्तांतरण को अपनाने के लिए प्रशिक्षित है, इसलिए 21वीं शदी में भारत-अमेरिका के संबंध विश्व को दिशा देने में एक महत्वपूर्ण कारक साबित होने वाले है।
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