भारत की मजबूत होती स्थिति से चिढ़ता चीन- दैनिक जागरण (04.04.2024) राष्ट्रीय संस्करण


दुनिया के लगभग सभी बड़े देश और राजनीतिक संगठन भारत व चीन के मामले में भारत पर ही भरोसा करते हैं और भारत के साथ ही खड़े होना चाहते हैं। इसलिए चीन की हरकतों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत को तैयार रहना चाहिए। चूंकि चीन सीमा क्षेत्र के मुद्दों को जीवित रखते हुए भू-राजनीतिक अस्थिरता कायम करना चाहता है। चीन की महत्वाकांक्षा विश्व के तमाम देशों को अपने जाल में फंसाने की है, जबकि भारत वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास करता है। 


 


 

पूर्वी हिमालयी सीमा क्षेत्र में चीन के अनुचित दावे और धमकियों की नियमितता भारत की संप्रभुता के विरुद्ध है। सीमा क्षेत्र के मुद्दे को जीवित रख कर चीन भू-राजनीतिक स्थिरता को बिगाड़ना चाहता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर उसकी हरकतें इस बात की पुष्टि करती है। चीन की विस्तारवादी एवं वर्चस्ववादी प्रवृत्तियों को वर्तमान में समझना कठिन नहीं रह गया है। चीन ने सबसे पहले तिब्बत पर कब्जा किया, फिर अक्साई चिन को हड़प लिया। अब इसी कराकोरम के रास्ते पाकिस्तान को जोड़कर हिंद महासागरीय क्षेत्र के बंदरगाह ग्वादर तक पहुंचने की सीपीईसी को सफल बनाने के लिए लद्दाख क्षेत्र के लिए गंभीर खतरा बन गया है। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा हुई। इस दौरान उन्होंने 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सेला सुरंग का उद्घाटन भी किया, जिस पर चीन ने उकसावे वाले बयान दिए।

अरुणाचल प्रदेश पर अपनी झूठी आपत्तियों के क्रम को कायम रखते हुए इस बार इसे चीन ने अपनी प्राचीनता से जोड़ दिया है। चीन अरुणाचल प्रदेश को जांगनान (चीनी नाम) कहता है। चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग शियाओगंग ने 15 मार्च को अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते हुए कहा कि तिब्बत (शिजांग, चीनी नाम) का दक्षिणी हिस्सा यानी चीन के क्षेत्र का एक अभिन्न हिस्सा है। अपने दावों को उजागर करने के लिए भारतीय नेताओं के राज्य के दौरे पर हर बार आपत्ति करता रहा है। भारत ने अरुणाचल प्रदेश पर चीन के क्षेत्रीय दावों को हर बार की तरह खारिज करते हुए कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न एवं अविभाज्य हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत के किसी क्षेत्र के नाम बदल देने से वास्तविकता को नहीं बदला जा सकता है तथा आधारहीन दलीलों को बार-बार दोहराने से ऐसे दावों को वैधता नहीं मिल जाती है। इस बार अमेरिका ने चीन के दावे का खंडन किया है और चीन के एकतरफा दावों पर अपनी आपत्ति जताई है। इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग भी माना है। लिहाजा चीन अमेरिका के वक्तव्य से चिढ़ा हुआ है।

विश्व भर में इस बात को व्यापक रूप में स्वीकार्यता मिल चुकी है कि चीन अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दूसरे देशों से सीमा विवादों को बढ़ावा देकर उसका लाभ उठाता है। चीन भारत को उकसाने या सीमावर्ती क्षेत्रों में यथास्थिति को बदलने के लिए साजिश में लगा रहता है तथा लंबे समय से चले आ रहे समझौतों को बनाए रखने में चीनी विफलता का दुष्परिणाम था कि वर्ष 2020 में हिंसा और रक्तपात हुआ, जिससे भारत-चीन संबंधों में तल्खी आई है। एक तरफ चीन की अरुणाचल प्रदेश पर कुदृष्टि है, तो दूसरी तरफ चीन में सीमा शांति हेतु 28 मार्च को भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय की 29वीं बैठक सम्पन्न हुई। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि सीमा की सुरक्षा को लेकर भारत कभी समझौता नहीं करेगा।

अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने के उद्देश्य के निमित्त भारत ने सीमावर्ती क्षेत्रों और अंदर के क्षेत्रों में अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ा है। इसी क्रम में सेला सुरंग, जो तवांग के लिए सभी मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करने वाला तथा रक्षा तैयारियों को बढ़ावा देने के कारण भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही पूर्वी हिमालय में चीन द्वारा उत्पन्न भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए आधार प्रस्तुत करता है, जो चीन के एकाधिकार को संतुलित करेगा तथा अरुणाचल प्रदेश के पूरे सीमा क्षेत्र की सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा।

संबंधों में जटिलता : चीन-भारत सीमा मुद्दे पर चीन के उकसावे ने इस मुद्दे के समाधान को केवल जटिल ही नहीं बनाया, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिति को बाधित किया है और दोनों देशों के बीच टकराव को तेज किया है। जहां दोनों देश सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सहमत हुए थे, चीन समझौते के विपरीत काम करते हुए अपनी प्रतिबद्धताओं से मुकर गया और सीमा पर लगातार परेशानी खड़ा कर रहा है। चीन की यह विशेषता रही है कि किसी क्षेत्र में एक बार बहुत कम समय की नाममात्र की आधिपत्य स्वीकारता रही हो तो वह उसे अपने साम्राज्य का हिस्सा मान लेता है। जब भी, हजार वर्षों बाद भी यदि मौका आया तो उसे अपने अनुचित दावों को लेकर विवाद पैदा कर देता है।

भारत की आजादी के बाद के दशकों में, चीन भारत के भू-भागों पर अपना दावा करता रहा है। अरुणाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर पर दावे भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर खुले तौर पर सवाल उठाना आसान रहा, क्योंकि भारत ने एक अच्छे पड़ोसी देश के रूप में उदारता और शालीनता का परिचय दिया है। परंतु आज का नया भारत चीन को सख्त भाषा में प्रतिक्रिया देना शुरू कर चुका है। राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संप्रभुता को लेकर अत्यंत सतर्क है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय और चीनी सैनिक पिछले लगभग चार वर्षों से आमने-सामने खड़े हैं। चीन के साथ तनाव को देखते हुए बीते माह ही भारत ने लगभग दस हजार सैनिकों की एक टुकड़ी को चीन की सीमा पर तैनात कर दिया है, जो चीन को परेशान करने वाला है। इसके अतिरिक्त वैश्विक स्तर पर चीन के विरुद्ध अपनी रणनीति को बदलते हुए भारत ने दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस का पक्ष लिया तथा नियम-आधारित व्यवस्था का समर्थन करते हुए फिलीपींस की राष्ट्रीय संप्रभुता को बनाए रखने के लिए भारत के समर्थन की पुष्टि की है, जो भारत के नव-आत्मविश्वास के विस्तार और अभिव्यक्ति को दर्शाता है।  इससे परेशान होकर चीन ने तुरंत कहा कि इस मामले में तीसरे देशों की कोई भूमिका नहीं है।

कहा जा सकता है कि भारत की मजबूत होती स्थिति दुनिया और क्षेत्र की शांति, स्थिरता और विकास के लिए अनुकूल है, क्योंकि भारत के पास चीन की तरह विस्तारवादी या सैन्यवादी एजेंडा नहीं है। भारत की सैन्य ताकत अपने देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित रखना है। भारत वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास करता है, न कि दुनिया भर में सैन्य अड्डे स्थापित करना चाहता है, जिसे चीन एक महत्वाकांक्षी महाशक्ति के रूप में चाहता है। 

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