संकट में भारत के रणनीतिक हित- हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा (17.08.2024)






            वर्ष 1947 में भारत के विभाजन से धर्म के आधार पर पाकिस्तान बनने के चौबीस वर्ष बाद 1971 में पहले बंगाली फिर मुस्लिम की भावना से अलग हुआ बांग्लादेश दक्षिण एशिया का पहला भाषाई राष्ट्र बना, जो बंगाली भाषा के माध्यम से भारत के करीब रहा है। भारत के ही समर्थन से तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन के नेता इस परिवर्तन को करने में सफल हो पाए थे। इसके बाद बांग्लादेश में वर्ष 1975 में मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद की सरकारों में भारत से संबंधों में उतार-चड़ाव रहा है, परंतु शेख हसीना के नेतृत्व में तथा उनके लंबे कार्यकाल से बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता आई और क्षेत्रीय सुरक्षा में सहयोग मिला। पिछले दशक में भारत व बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों में स्वर्णिम अध्याय के पन्ने जुड़े है। शेख हसीना ने दोनों देशों को विभाजन की कुछ कड़वी विरासतों को पार करने में मदद की तथा सीमा पार आतंकवाद को समाप्त किया। बांग्लादेश की धरती से भारत के खिलाफ सक्रिय विरोधी समूहों पर कार्यवाही की, जिससे भारत को पूर्वोत्तर राज्यों के प्रबंधन में मदद मिली। बांग्लादेश के चटगांव व मोंगला बंदरगाहों के माध्यम से समुद्री व्यापार में वृद्धि हुई तथा कनेक्टिविटी लिंक का पुनर्निर्माण, सड़कों, रेल, अंतर्देशीय जलमार्ग और हवाई लिंक का विस्तार, नये रक्षा सहयोग पर हस्ताक्षर के अलावा पाकिस्तान से आतंकवाद पर सार्क के बहिष्कार से लेकर नागरिकता संशोधन अधिनियम तक हर मुद्दे पर शेख हसीना भारत के साथ खड़ी रहीं है। पिछले कुछ महीनों में भारत के साथ द्विपक्षीय मतभेदों को कम करने की अहम कोशिश भी हुई। दोनों देशों ने पिछले डेढ़ दशक में हर मोर्चे पर संबंधों में बदलाव किया है, जो भारत की ' पड़ोसी पहले' ' एक्ट ईस्ट' नीति की सफलता के लिए महत्वपूर्ण रहा है और इस वर्ष उनकी दसवीं वर्षगांठ भी है।
            आर्थिक मोर्चे, सीमा सुरक्षा, रक्षा और रणनीतिक संबंध, व्यापार, कनेक्टिविटी और लोगों को लोगों से जोड़ने की मुहिम पर अवरोध तब लग गया, जब आरक्षण जैसे मुद्दे को लेकर शुरू हुआ विरोध-प्रदर्शन ने डेढ़ महीने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ने पर मजबूर कर दिया और भारत में शरण लेनी पड़ी। सरकार पर अपने मजबूत नियंत्रण के बावजूद शेख हसीना अपने नीचे पनप रहे असंतोष की गहराई को मापने में विफल रही। इस संकट ने बांग्लादेशी कट्टरपंथियों को एक मौका दे दिया और विरोध एक चिंताजनक मोड़ सांप्रदायिक हिंसा के रूप में बदल दिया गया, जिसमें बड़े पैमाने पर हिंदू अल्पसंख्यकों व मंदिरों पर हमलें, उनकी संपत्ति की लूट जैसे अमानवीय कृत्य हुए। इसका भारत पर प्रभाव पड़ेगा, जिसमें शरणार्थियों के साथ घुसपैठियों की आने का जोखिम भी शामिल है।
            बांग्लादेश के कट्टरपंथी समूह व आईएसआई लंबे समय से लगातार भारत विरोधी अभियानों में लगे रहे है। भारत पर अपने पूर्व और पूर्वोत्तर सीमा पर निगरानी बढ़ाने का दबाव बढ़ गया है। अब जरूरी हो गया है कि भारत अधिक संख्या में सैन्य बलों की तैनाती, रक्षा खर्च में वृद्धि और सीमा पर बुनियादी ढांचों का निर्माण के माध्यम से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करे। भारत ने शेख हसीना से ऐसी परियोजनाएं हासिल की है, जिनके लिए चीन प्रयासरत था। भारत व बांग्लादेश का गंगा जल- संधि का नवीनीकरण होना है। उत्तर बंगाल में 23 किलोमीटर लंबे संकरे 'चिकेन नेक' के पास तीस्ता जल बंटवारे और उसके बेसिन के विकास के समझौते महत्वपूर्ण विषय अभी सुलझे नहीं है। जिस प्रकार कट्टरपंथी भारत विरोधी रुख अपनाए हुए है, उस कारण ढाका की नई सरकार चीन को कई परियोजनाओं में शामिल कर सकती है, जिससे भारत के अपने हित और सुरक्षा को चुनौती मिल सकती है।
            बांग्लादेश दक्षिण- पूर्व एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए क्षेत्रीय योजनाओं व परिगमन के साथ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। मई 2024 में शेख हसीना ने आरोप लगाया था कि बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को विभाजित करके पूर्वी तिमोर के समान एक ईसाई राज्य बनाने की साजिश अमेरिका कर रहा है। भारत के लिए अच्छी बात यह है कि 1971 के विपरीत वर्तमान में चीन अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी है और चीन के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए दक्षिण एशिया में भारत अमेरिका का महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरा है। भारत और अमेरिका दोनों चीन के प्रभाव को सीमित करना चाहते है, जिसके कारण प्रशांत महासागर, दक्षिण और पूर्वी चीन सागर से हिंद महासागर तक प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। वर्तमान भारतीय उपमहाद्वीप और उसके सागरीय क्षेत्र में भारतीय व अमेरिकी हितों के बीच गहरे संरचनात्मक अभिसरण को कमजोर होने संभावना नहीं है। बांग्लादेश में मौजूदा संकट और म्यांमार में सैन्य संकट के कारण बंगाल की खाड़ी और उसके तटीय इलाकों में भारत-अमेरिका के बीच अधिक सहयोग की जरूरत है।
            वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थितियों के संदर्भ में पड़ोसी देश में राजनीतिक संकट को हमेशा भारत द्वारा आकलित, नियंत्रित और टाला नहीं जा सकता है। बांग्लादेश में तख्तापलट की अप्रत्याशित घटना भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत करती है, परंतु यह एक्ट ईस्ट नीति की विफलता नहीं है। श्रीलंका व मालदीव की घटना से ऐसा लगा कि भारत की पड़ोसी पहले व एक्ट ईस्ट की नीति कमजोर हो रही है, क्योंकि वर्तमान में जो पड़ोसी देश सत्ता परिवर्तन के दौर से गुजरे है, वह भारत के पक्ष या चीन के पक्ष में दिखाई देता है। परंतु पड़ोसी देशों में अपनी रणनीति के तहत राजनीतिक बदलावों के बावजूद भारत का आर्थिक पकड़ गहरा और विस्तारित हो रहा है। भारत के विकल्प के तौर पर चीन जोखिमपूर्ण है और प्रभाव विश्वव्यापी है, जिसको अभी हाल में मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़ू ने महसूस किया है और भारत से निकटता बढ़ाने के लिए तत्पर है।    
            इस संकट के भू-राजनीतिक निहितार्थ तात्कालिक द्विपक्षीय चिंताओं से परे हैं। साझा सीमाओं, संस्कृति और जैविक पारस्परिक निर्भरता के साथ भारत-बांग्लादेश प्राकृतिक भागीदार हैं। बांग्लादेश की अवस्थिति भारत के लिए बेहद संवेदनशील है। इसकी लगभग 4096 किमी की लंबी सीमा भारत से लगती है। यह हमारे पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा और आर्थिक विकास  दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। सम्पूर्ण क्षेत्र भौगोलिक रूप से चीन के करीब है और चीनी हस्तक्षेप की चपेट में भी है। बांग्लादेश की रणनीतिक स्थिति और चीन के साथ उसके संबंध महत्वपूर्ण जटिलता लिए हुए है। समुद्र में अपनी शक्ति बढ़ाने के उद्देश्य से चीन अपने निकट के सागरों व महासागरों को नियंत्रित करने में लगा हुआ है। हिंद महासागरीय क्षेत्र, जो भारत के लिए भू-सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, वह चीन के विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं की कुंजी है। इसके लिए वह कर्ज जाल की नीति से लेकर आक्रामक धमकियों तक की रणनीति अपनाता रहा है। चीन बांग्लादेश के लिए एक प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता रहा है, जो पनडुब्बियों, युद्धपोतों के साथ नए नौसैनिक अड्डे के लिए सहायता प्रदान करता है। चीन ने बांग्लादेश को काफी मात्रा में ऋण भी दिया है।
            बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल न केवल देश के लिए बल्कि क्षेत्रीय गतिशीलता के लिए भी महत्वपूर्ण है। आने वाले महीने भारत-बांग्लादेश संबंधों के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण होंगे। बांग्लादेश की नई सरकार के साथ अपने रणनीतिक हित के साथ सक्रिय रहने की जरूरत है, जिससे विस्तारवादी चीन भारत की सुरक्षा की चुनौती न बन सके। वैसे भी कट्टरपंथियों के निशाने पर भारत रहा है, जो बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध के विरोधी है। अपने दीर्घकालिक हितों को खतरे में डाले बिना बांग्लादेश में तेजी से बदलते परिदृश्य पर नजर रखते हुए संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता है।

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