चीन के लिए भी कठिन वक्त- हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, 09.11.2024
चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी जारी है। चीन अपनी स्थिर अर्थव्यवस्था तथा अमेरिका, यूरोप व अपने कई पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंधों का सामना कर रहा है। अमेरिका ने चीनी कंपनियों पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे चीन को कठिन स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। इसके साथ ही चीन को दक्षिण चीन सागर में कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। फिलीपींस के जहाज चीन को समुद्र में चुनौती दे रहे है और लगभग हर महीने चीन के विस्तारवादी मंसूबों से उनकी टकराहट होने लगी है। इसके साथ ही ताइवान के विलय के लक्ष्य को शी जिनपिंग अभी तक हासिल नहीं कर पाये हैं, जिसके लिए चीन लगातार सैन्य-अभ्यास के माध्यम से ताइवान की घेराबंदी कर रहा है। अपने इरादे को पूरा करने के लिए चीन को हिमालय की शांतिपूर्ण स्थिर सीमा की आवश्यकता है, जहां भारत मजबूती के साथ डटा है। चीन के लिए एक साथ ताइवान और भारत के साथ युद्ध की स्थिति में तैयार रखना मुश्किल है।
विगत चार वर्षों की सीमा-गतिरोध के बीच सैन्य व कूटनीतिक स्तर की वार्ता के बाद भारत और चीन द्वारा 21 अक्टूबर 2024 को अपने सैनिकों की वापसी और गश्त शुरू करने को लेकर किया गया समझौता ऐतिहासिक कदम है। ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस ऐतिहासिक समझौते पर रूस के कजान शहर में बैठक भी की, जो दोनों देशों के हित के साथ ही वैश्विक शांति, स्थिरता और विकास के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जून 2020 में गलवान घाटी में सैन्य-झड़प के बाद के वर्षों में सीमा पर तनाव में कमी की कोशिश की गयी थी, परंतु पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के दो महत्वपूर्ण मोर्चे डेमचोक और देपसांग में तनाव कम करने की सहमति होने के बाद अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति के अनुरूप सीमा विवाद का समाधान हो गया है। उत्तरी लद्दाख में देपसांग काराकोरम दर्रे व सियाचिन ग्लेशियर के निकट स्थित होने के कारण सैन्य महत्व का है तथा सैन्य बुनियादी ढांचे व आपूर्ति लाइनों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में अवस्थित है। देपसांग पर नियंत्रण भारत को सियाचिन सेक्टर में एक रक्षात्मक स्थिति प्रदान करता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसी तरह दक्षिण-पूर्वी लद्दाख में स्थित डेमचोक रणनीतिक रूप से एक दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएसडीबीओ) रोड जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और आपूर्ति मार्गों के पास स्थित है, जो दूरदराज के सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की कनेक्टिविटी बनाए रखने के लिए सैन्य दृष्टि से बहुत उपयोगी है। तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से इसकी निकटता के कारण चीन की नजर रहती है, जो भारत के सीमा प्रबंधन व प्रमुख आपूर्ति के लिए आवश्यक है।
चीन के साथ 3488 किमी की लंबी एलएसी होने के कारण इसका विवाद-रहित सीमांकन करना कठिन है। इसलिए पिछले चार वर्षों में भारत और चीन द्वारा सीमा पर 50 हजार से अधिक सैनिक तैनात किए गए थे। इस परिस्थिति में यह समझौता एक मील का पत्थर साबित होने वाला है, जो कि कूटनीतिक जीत जैसी दिखाई पड़ता है, परंतु चीन जैसे विस्तारवादी देश के लिए यह संभव नहीं है। भारत ने अपनी सीमा पर सैन्य शक्ति बढ़ाकर और उस शक्ति का प्रदर्शन कर चीन को सीमित कर दिया था, जिससे चीन को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर होना पड़ा, जो कि चीन के स्वभाव के विपरीत है।
वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी जारी है। चीन अपनी स्थिर अर्थव्यवस्था तथा अमेरिका, यूरोप व अपने कई पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंधों का सामना कर रहा है। अमेरिका ने चीनी कंपनियों पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे चीन को कठिन स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। इसके साथ ही चीन को दक्षिण चीन सागर में कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। फिलीपींस के जहाज चीन को समुद्र में चुनौती दे रहे है और लगभग हर महीने चीन के विस्तारवादी मंसूबों से उनकी टकराहट होने लगी है। इसके साथ ही ताइवान के विलय के लक्ष्य को शी जिनपिंग अभी तक हासिल नहीं कर पाये हैं, जिसके लिए चीन लगातार सैन्य-अभ्यास के माध्यम से ताइवान की घेराबंदी कर रहा है। अपने इरादे को पूरा करने के लिए चीन को हिमालय की शांतिपूर्ण स्थिर सीमा की आवश्यकता है, जहां भारत मजबूती के साथ डटा है। चीन के लिए एक साथ ताइवान और भारत के साथ युद्ध की स्थिति में तैयार रखना मुश्किल है। इसलिए भारत के साथ बेहतर संबंध रखना चीन की वर्तमान परिस्थिति के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
यूक्रेन संघर्ष के बाद से अमेरिकी वैश्विक भू-राजनीति बदल गई है। बहु- ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के कारण भारत का स्थान महत्वपूर्ण हो गया है। भारतीय हितों की रक्षा के लिए भारत अपनी स्थिति मजबूत करने में लगा है। इसके लिए दुनिया की कई बड़ी शक्तियों के बीच संतुलन तथा उनके साथ समायोजन का प्रयास कर रहा है। इस बीच भारत अमेरिका के भी करीब आ गया और चीन की अमेरिका के साथ प्रतिद्वंद्विता के कारण नए संबन्धों से लाभान्वित भी हो रहा है। वर्तमान में किया गया सीमा समझौता भारत-चीन संबंधों को तेजी से बदलती वैश्विक व्यवस्था के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। दोनों राष्ट्र एक उभरती हुई बहु- ध्रुवीय दुनिया के केंद्र में हैं, जहां क्षेत्रीय गतिशीलता और वैश्विक शासन के तीव्र प्रवाह ने भू- राजनीतिक परिस्थितियां खड़ी कर दी है। भारत के लिए चीन के साथ संबंध विस्तार एशिया और विश्व स्तर पर अपने प्रभाव को मुखर करने की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है। वहीं क्वाड के माध्यम से भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति और उसके विस्तारवाद को संतुलित करने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर चीन को नियंत्रित करने का प्रयास भी कर रहा है।
भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता सीमा विवादों से परे क्षेत्रीय और वैश्विक नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धी दृष्टिकोण तक फैली हुई है। मोदी-शी जिनपिंग की बैठक एलएसी पर तनाव को दूर करने की दिशा में प्रगति का संकेत देती है, लेकिन तनाव को और बढ़ाए बिना अपनी रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता को प्रबंधित करने में बड़ी चुनौती मिलने वाली वाली है। ऐतिहासिक रूप से दोनों के बीच जब भी सहयोग के लिए भारत ने कदम बढ़ाए है, हमेशा से चीन ने संघर्ष का रास्ता दिखाया है। आज की वैश्विक परिस्थिति में विकास के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए दोनों देशों को अपने संबंधों के व्यापक निहितार्थों को स्वीकार करते हुए आपसी मतभेदों को सुलझा लेने की जरूरत है, जो न केवल उनके विकास लक्ष्यों को बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक शांति को भी प्रभावित कर सकता है।
भारत का चीन के साथ सीमा विवाद के कई और भी स्थान है। भारत अक्साई चिन पर अपना दावा करता है, लेकिन यह क्षेत्र चीन के नियंत्रण में है। भारत के साथ 1962 के युद्ध में चीन ने इस पूरे क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया था। इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते हुए करता है। तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को भी चीन नहीं मानता है। वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया। विकास की अपार संभावनाओं के बावजूद निकट भविष्य में चीन के साथ संबंधों को मौलिक रूप से नहीं बदला जा सकता और हिमालयी सीमा का स्थिर करना हमेशा संदिग्ध ही है। दोनों देशों वैश्विक स्तर पर बहु-ध्रुवीय विश्व के इच्छुक हैं, परंतु भारतीय उपमहाद्वीप व पड़ोस की स्थिति में चीन की नियत बदल जाती है और एक- ध्रुवीय एशिया के सपने देखता है।
गतिरोध वाले दो बिंदुओं डेमचोक और देपसांग में सैनिकों की वापसी हो गई है। भारत और चीन ने गुरुवार को दिवाली के मौके पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मिठाइयों का आदान-प्रदान किया है। भारत और चीन संबंधों की एक नई शुरुआत कर रहे हैं और दोनों के सामने विकास के नए अवसर हैं। चीन की सीमा पर विश्सनीयता उसकी विस्तार की प्रवृति को देखते हुए भारत को अपनी क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से तैयार व सतर्क रहने की जरूरत हैं। नवीनतम समझौते में भारत का हिमालय की सीमा में गतिरोध कम होने से भारत अपने रक्षा बजट में कटौती कर पाएगा और भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अन्य क्षेत्रों जैसे हिंद महासागर की ओर अपना शक्ति को संगठित करने का पर्याप्त अवसर मिल पाएगा।
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