ट्रंप के फैसलों का प्रभाव, हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा (01.02.2025)

ट्रम्प का प्रवासियों के लिए लिया गया यह निर्णय अमेरिका के लिए लाभदायक नहीं लगता है। कुशल श्रम गतिशीलता को अप्रवासन से स्पष्ट रूप से अलग करने की आवश्यकता है। कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ती जनसांख्यिकी और प्रतिभा की कमी के साथ, व्यवसायों को नवाचार को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक प्रतिभा तक पहुंच होनी चाहिए। कुशल अप्रवासी सिर्फ़ नौकरियां वाली जगह ही नहीं भरते, वे उन्हें बनाते भी हैं। वे स्टार्टअप शुरू करते हैं, पेटेंट दाखिल करते हैं और नवाचार को बढ़ावा देते हैं, जिससे अमेरिकी रोज़गार की नींव मजबूत होती है। 

डोनाल्ड ट्रम्प के राजनीतिक पुनरुत्थान से केवल अमेरिकी राजनीति ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में उथल-पुथल मच गया है। ट्रंप के कई फैसले जिसमें 6 जनवरी, 2021 को कैपिटल हिल हिंसा में शामिल 1,500 लोगों की माफी, पेरिस समझौते व विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका के बाहर निकलने, अमेरिका को नुकसान पहुंचाने वाले अप्रवासियों को फांसी की व्यवस्था करने तथा थर्ड जेंडर का दर्जा खत्म करने जैसे निर्णय लिए है। इसके साथ ही कनाडा व मेक्सिको पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने, अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने के बदले ब्रिक्स देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की बात की है। कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की बात करते है तथा अमेरिका-मेक्सिको सीमा के अधिकांश हिस्से पर बनवाई गई 452 मील लंबी दीवार को पूरा करने के साथ ही ‘मेक्सिको में ही रहें’ नीति को भी फिर से लागू कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पनामा से नहर क्षेत्र को वापस लेने की बात की है, जिससे अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के बीच इन महत्वपूर्ण शिपिंग लेन पर अमेरिका का पूर्ण नियंत्रण हो सके। उत्तरी अटलांटिक में ग्रीनलैंड का समुद्री व वायु मार्गों पर अवस्थिति रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। यहां खनिज भंडार की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता तथा बाजारों पर वर्तमान में चीन का एकाधिकार है। ट्रम्प आर्कटिक में चीन और रूस की बढ़ती उपस्थिति को नियंत्रित करने के लिए डेनमार्क से ग्रीनलैंड को खरीदना चाहते हैं, हालांकि पूर्व में अमेरिकी प्रयास असफल साबित हुए है। 
ट्रम्प ने अपने ‘मेक-अमेरिका-ग्रेट-अगेन’ भाषण में कनाडा, डेनमार्क, मैक्सिको आदि जैसे पारंपरिक सहयोगियों के खिलाफ टैरिफ वार शुरू करने की धमकी दी, परंतु चीन के खिलाफ 60 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने का वादा करने के बाद भी चीन के खिलाफ टैरिफ नहीं लगाया। इसके अतिरिक्त 75 दिनों के लिए टिकटॉक को प्रतिबंध-मुक्त कर अपनी नई रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इससे उम्मीद की जा सकती है कि ट्रंप आंशिक रूप से अमेरिका- चीन व्यापार को आगे बढ़ा सकते है, जो एलन मस्क व मस्क के चीनी हितों, टिकटॉक पर ट्रंप की स्थिति और अल्पकालिक सौदेबाजी के लिए उनके झुकाव जैसे कारकों से प्रभावित होगा। भू-राजनीतिक परिस्थितियां चीन को लेकर सजगता व उस पर अमेरिका की निर्भरता कम करने के प्रयास में भारत के लिए अवसर उत्पन्न होगा। पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका ने क्वाड जैसे मंचों का लाभ उठाते हुए प्रमुख क्षेत्रों में अपनी रणनीतिक साझेदारी को काफी मजबूत किया है। प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर दोनों देशों के बीच साझेदारी सूचना और संचार प्रौद्योगिकी से आगे बढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), साइबर सुरक्षा और सेमी-कंडक्टर जैसे उभरते क्षेत्रों तक फैली हुई है। चीन को लेकर साझा चिंताओं ने अमेरिका को भारत की तरफ झुकने को मजबूर किया है।  
प्रत्येक राष्ट्र एकीकृत, परस्पर जुड़े वैश्विक दृष्टिकोण की तुलना में घरेलू एजेंडों को आगे बढ़ाने को प्राथमिकता देते हैं। इसी निमित्त अवैध अप्रवासिओं को अमेरिका के लिए अस्तित्व का मुद्दा बनाकर लगभग 20 मिलियन अवैध अप्रवासियों में से अधिक से अधिक लोगों को निर्वासित करने की ट्रम्प की योजना है। अवैध अप्रवासियों के प्रवाह को रोकना तथा लाखों लोगों को उनके वतन वापस भेजना अमेरिका से सम्बन्धों के साथ उन राष्ट्रीय सरकारों पर गंभीर रूप से प्रभाव पड़ेगा। अप्रवासन राष्ट्रों के लिए एक संवेदनशील विषय बना हुआ है। ट्रम्प की अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में वापसी से भारत में उत्साह था, तथा उम्मीदे थी। परंतु अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी के साथ भारत की दो मोर्चों पर मुश्किलें बढ़ी हैं, जिसमें व्यापार और भारतीयों का अमेरिका में प्रवास है। भारत सरकार के लिए अप्रवासी मुद्दा घरेलू मोर्चे पर संवेदनशील हो सकता है, क्योंकि तमाम भारतीय अमेरिका जाकर बसना चाहते हैं। अमेरिका को योग्य विदेशी कर्मियों की आवश्यकता जरूर है, जिससे भारत को लाभ है। परंतु वास्तविक समस्या उन भारतीय मूल के लोगों के मामले में आएगी, जो कनाडा या अन्य देश के जरिये अमेरिका गए बिना वैध दस्तावेजों के वहां टिके हुए हैं। विदेश मंत्रालय कह चुका है कि भारत अवैध प्रवासियों को वापस लेने के लिए तैयार होगा, यदि वे खुद को भारतीय साबित कर देते हैं। परंतु भारतीयों की संख्या को लेकर अमेरिका में भारतीयों की संख्या पर अलग-अलग दावे हैं। होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में भारत से अनधिकृत अप्रवासियों की अनुमानित संख्या दो लाख बीस हजार थी। प्यू रिसर्च सेंटर और सेंटर फॉर माइग्रेशन स्टडीज का अनुमान है कि यह संख्या लगभग तीन गुना अधिक है। भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह अवैध प्रवासियों को वापस लेने के लिए तैयार होगा, यदि वे खुद को भारतीय साबित कर देते हैं। ब्लूमबर्ग ने बताया कि भारत सरकार अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे 18,000 भारतीयों को वापस लाने का इरादा रखती है। 
ट्रम्प का प्रवासियों के लिए लिया गया यह निर्णय अमेरिका के लिए लाभदायक नहीं लगता है। कुशल श्रम गतिशीलता को अप्रवासन से स्पष्ट रूप से अलग करने की आवश्यकता है। कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ती जनसांख्यिकी और प्रतिभा की कमी के साथ, व्यवसायों को नवाचार को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक प्रतिभा तक पहुंच होनी चाहिए। कुशल अप्रवासी सिर्फ़ नौकरियां वाली जगह ही नहीं भरते, वे उन्हें बनाते भी हैं। वे स्टार्टअप शुरू करते हैं, पेटेंट दाखिल करते हैं और नवाचार को बढ़ावा देते हैं, जिससे अमेरिकी रोज़गार की नींव मजबूत होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कुशल अप्रवासन को प्रतिबंधित करने से स्थानीय श्रमिकों के लिए अधिक नौकरियां पैदा होंगी, जैसी नकारात्मक विचार नवाचार और रोजगार सृजन के लिए प्रतिकूल है।
विश्व की भू-राजनीतिक परिस्थितियां परस्पर हितों को लेकर की उभरती है। इन परिस्थितियों में भारत के लिए ग्लोबल साउथ देशों का मंच सबसे उपयुक्त स्थल हो सकता है, जिसका विस्तार दक्षिण एशिया से लेकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के क्वाड सदस्यों और पश्चिम एशिया तक जाता है। रूसी राष्ट्रपति के साथ टकराव रखने वाले बाइडन के विपरीत पुतिन के प्रति ट्रंप का रवैया व्यावहारिक है। जहां तक रूस के साथ संबंधों की बात है तो ट्रंप सरकार में इसे लेकर कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। भारत जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर अपनी इस क्षमता व संतुलित सम्बन्धों का प्रदर्शन कर चुका है।
हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प वैचारिक रूप से एक जैसे साथी हैं। उनके बीच काफी घनिष्ठ संबंध हैं तथा वे आतंकवाद और लोकतांत्रिक पतन की आलोचना को नापसंद करते हैं। परंतु ट्रम्प की वर्तमान की स्थिति लोकतान्त्रिक देश अमेरिका के लिए उचित नहीं लगती है, जो किसी देश की संप्रभुता को अपने हित के लिए चोट करें। हालांकि जनवरी 2024 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने तथा उन दीर्घकालिक नियमों को हटाने के लिए आवश्यक कदम उठाए, जो भारत की अग्रणी परमाणु इकाइयों और अमेरिकी कंपनियों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग में बाधा आ रही थी। ट्रंप ने मोदी के साथ वैश्विक शांति, हिंद-प्रशांत, पश्चिम एशिया और यूरोप में सुरक्षा के साथ-साथ निष्पक्ष द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों पर चर्चा कर आपसी सहयोग बढ़ाने और संबंध गहरा करने की उम्मीद की है। भारत के प्रधानमंत्री की फरवरी महीने में अमेरिका की यात्रा से भारत- अमेरिकी सम्बन्धों में बेहतर प्रगति की उम्मीद की जा सकती है।

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