मालदीव पर चीन का कसता शिकंजा और भारत की चुनौतियां- हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा (13.01.2024)
चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं के माध्यम से स्थलीय व समुद्री मार्गों पर नियंत्रण कर विश्व की महाशक्ति बनने के सपने देख रहा है। इसके लिए चीन कर्ज-जाल की नीति से लेकर आक्रामक धमकियों तक की रणनीति अपनाता रहा है। चीन एकध्रुवीय एशिया के सपने देख रहा है, परंतु भारत बहुध्रुवीय एशिया के समर्थन में है तथा खुद को चीन की तुलना में एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करने के प्रयास में लगा है, जिसकी उम्मीद की जा सकती है।
सितंबर 2023 में चीन समर्थक मोहम्मद मुइज्जू व पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) के कई राजनेताओं ने अपना चुनाव अभियान 'गो बैक इंडिया' और 'इंडिया आउट' के नारों से भारत के विरुद्ध केंद्रित कर मालदीव की संप्रभुता को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया, जिसे मालदीव समाज ने उस अलगाववाद की भावना का समर्थन कर मोहम्मद मुइज्जू को सत्ता में बैठा दिया। सत्ता में आने के तुरंत बाद शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाते हुए मोहम्मद मुइज्जू ने भारत से उन 75 सैन्य- कर्मियों को वापस बुला लेने का दबाव बनाना शुरू कर दिया, जो आपातकालीन चिकित्सा निकासी और आपदा राहत कार्यों के लिए मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) को भारत द्वारा प्रदान किए गए दो हेलीकॉप्टर और एक विमान का संचालन करते हैं। चीन की शह पर मुइज्जू सरकार भारत विरोधी आक्रामक रवैया अपना रही है, जिसके तहत हाइड्रोग्राफी (जल सर्वेक्षण विज्ञान) के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग के सहमति पत्र के नवीनीकरण के विरुद्ध फैसला किया है। 09 और 30 सितंबर 2023 को मालदीव में हुए राष्ट्रपति चुनाव पर यूरोपीय संघ द्वारा 09 जनवरी 2024 को प्रकाशित अंतिम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है कि प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) और पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) के सत्तारूढ़ गठबंधन ने चुनावों के दौरान भारत विरोधी भावनाओं को उजागर किया और इस विषय पर गलत सूचना फैलाने का प्रयास किया, जो भारतीय प्रभावों के डर और देश के अंदर भारतीय सैन्य कर्मियों की उपस्थिति के बारे में चिंता पर आधारित थी तथा अपमानजनक भाषा का प्रयोग भी किया। इन मुद्दों को इंटरनेट व सोशल मीडिया के जरिए ऑनलाइन दुष्प्रचार के रूप में भी इस्तेमाल किया गया।
यह रिपोर्ट उस समय आया है जब लक्षद्वीप में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भारत के प्रधानमंत्री ने एक स्नॉर्कलिंग अभियान व लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल ने अगत्ती हवाई अड्डे को विश्व स्तरीय सुविधा में बदलने की भारत सरकार की योजना की घोषणा की। कवरत्ती द्वीप की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने 1200 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उदघाटन भी किया। इस पर मालदीव सरकार में भारत विरोधियों ने मालदीव के पर्यटन उद्योग के चुनौती के रूप में लिया और कट्टरता व कटुता के साथ जवाब दिया, जिसमें इजराइल की कठपुतली और अन्य अपमानजनक बयान सामने आए। हालांकि मोहम्म्द मुइज्जू के नेतृत्व वाली मालदीव सरकार भारत के प्रभाव को कम करने और चीन के प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रही है, परंतु भारत के कठोर रुख को देखते हुए मोहम्मद मुइज्जू के तीनों मंत्रियों मरियम शिउना, महमूद माजिद और मालशा शरीफ को निलंबित कर दिया गया।
अब्दुल्लाह यामीन के वर्ष 2013 से 2018 तक के कार्यकाल के दौरान ही मालदीव चीन के करीब चला गया था और शी जिनपिंग की 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' परियोजना का हिस्सा भी बन गया। इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के नाम पर मालदीव चीन से लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का कर्ज ले चुका है, जो मालदीव की जीडीपी के 40 फीसदी से ज्यादा है। इसे चुका पाना मालदीव जैसे गरीब देश की क्षमता से बाहर है। इसके बदले चीन ने अभी तक मालदीव के 17 द्वीपों को पट्टे पर ले चुका है। परंतु वर्ष 2018 में सत्ता में आते ही इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने इंडिया फर्स्ट की नीति अपनाते हुए मालदीव की अंतरराष्ट्रीय नीतियों में बदलाव किए थे, जिससे मालदीव चीन के कर्ज-जाल से बच सके। मालदीव में चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत ने 50 करोड़ डॉलर की नागरिक बुनियादी ढांचा परियोजना की घोषणा की थी तथा माले को तीन नजदीकी द्वीपों से जोड़ने के लिए पुल और सड़क का निर्माण की योजना, जो मालदीव-चीन मैत्री पुल को पीछे छोड़ देने में सक्षम दिखाई पड़ रही है। इसके अलावा भारत ने वर्षों से मालदीव के नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य व विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत अवसर भी प्रदान किए है। अपनी नौसेना की मदद से भारत ने वर्ष 2004 की सुनामी और 2014 के जल संकट जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मालदीव की मदद करने में सबसे आगे था। इससे पूर्व भारत ने वर्ष 1988 में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ मालदीव सरकार की मदद लिए अपनी सैन्य सहायता भी भेज चुका है। कोविड महामारी के दौरान मालदीव की सहायता करने से लेकर उसके विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद को 2021 से 2022 के बीच 76वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुने जाने के अभियान में मदद भी की थी।
राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारत की बजाय अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए तुर्की को चुनकर परंपरा को तोड़ दिया तथा इसके बाद दिसंबर 2023 में कॉप-28 बैठक में भाग लेने के लिए संयुक्त अरब अमीरात गए। माले के मेयर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मुइज्जू ने सक्रिय रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना में मालदीव की भागीदारी को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब मुइज्जू 08 से 12 जनवरी तक चीन के निमंत्रण पर वहां की राजकीय यात्रा पर गए है, जो चीन की कर्ज-जाल नीति के शिकंजे में फंसने की संभावना को दर्शाता है। चीन मालदीव में ही नहीं, बल्कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के देशों में तेजी से कर्ज-जाल नीति के तहत अपनी विस्तारवादी नीति से पैठ बनाने में लगा हुआ है। चीन की कर्ज-जाल नीति में पाकिस्तान पूरी तरह से फंस चुका है, जिससे निकट भविष्य में उससे उबरना संभव नहीं है। चीन ने नेपाल में 1.34 अरब डॉलर का निवेश किया है, जिसने दोनों देशों के आर्थिक एवं कूटनीतिक रिश्तों को बदल दिया है तथा बेल्ट एंड रोड परियोजना के क्रियान्वयन के लिए दबाव भी बना रहा है। हम्बनटोटा में चीन ने 4.5 अरब डॉलर का निवेश कर श्रीलंका को आर्थिक पतन के कगार खड़ा कर दिया। बांग्लादेश में भारत समर्थक शेख हसीना फिर से सत्ता में वापस आई हैं, जहां चीन ने पिछले छह वर्षों में 26 अरब डॉलर का निवेश किया है। म्यांमार में जातीय विद्रोही गुटों की मदद करने के साथ ही वहां की तानाशाही का पूरा समर्थन भी किया है। भूटान में चीन के बढ़ते प्रभाव से सुरक्षा की चुनौतियाँ भी सामने आ रही है।
हिंद महासागर में मालदीव की अवस्थिति रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। समुद्री व्यापारिक मार्गों से इसकी निकटता और चीन के विस्तारवादी मंसूबों के कारण मालदीव भू-राजनीति के केंद्र में रहा है। चीन हिंद महासागर में अतिक्रमण करने का प्रयास कर भारत की उपस्थिति को सीमित करना चाहता है। भारत की स्थिति हिंद महासागर के शीर्ष पर होने के कारण आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। समस्त हिंद महासागर की तट रेखा का 14 प्रतिशत भाग भारत के अधिकार में है तथा लगभग 1250 द्वीपों के साथ हिंद महासागरीय क्षेत्र की लगभग आधी जनसंख्या भारत में रहती है। हिंद महासागरीय क्षेत्र, जो भारत के लिए भू-सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, वह चीन के विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं की कुंजी है। चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं के माध्यम से स्थलीय व समुद्री मार्गों पर नियंत्रण कर विश्व की महाशक्ति बनने के सपने देख रहा है। इसके लिए चीन कर्ज-जाल की नीति से लेकर आक्रामक धमकियों तक की रणनीति अपनाता रहा है। चीन एकध्रुवीय एशिया के सपने देख रहा है, परंतु भारत बहुध्रुवीय एशिया के समर्थन में है तथा खुद को चीन की तुलना में एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करने के प्रयास में लगा है, जिसकी उम्मीद की जा सकती है।
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