भारत के विरुद्ध चीन का षणयंत्र- दैनिक जागरण, राष्ट्रीय संस्करण (23.01.2024)

        केवल पर्यटन के आधार पर चीन-मालदीव संबंधों के विकास को समझना अदूरदर्शी सोच होगी। चीन अपनी विस्तारवादी मंसूबों के लिए हिंद महासागर में भारत को घेरना चाहता है। हिंद महासागर परिक्षेत्र में हो रहा चीनी विस्तार भारत के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक चुनौती बन गयी है। ब्लू इकॉनमी बनने के लिए चीन द्वारा खड़ी की गयी वैश्विक भू-राजनीतिक व भू-आर्थिक परिस्थितियों के कारण हिंद महासागरीय देशों को स्वतंत्र व समावेशी बने रहने लिए प्रतिबद्ध व एकजुट रहना आवश्यक है।


        भारत के प्रधानमंत्री के द्वारा लक्ष्यद्वीप को पर्यटन के रूप में विकसित करने के लिए सोशल मीडिया पर डाले गए पोस्ट के कारण मालदीव के तीन मंत्रियों ने इसे मालदीव पर्यटन के लिए एक चुनौती मानकर भारत और भारत के प्रधानमंत्री के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों पर मालदीव सरकार द्वारा निलंबित तो कर दिया गया, परंतु राष्ट्रपति मोहम्म्द मुइज्जू अपनी पांच दिवसीय चीन की राजकीय यात्रा से स्वदेश लौटने पर भारत के खिलाफ विवाद को और बढ़ा दिया है। भारत पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि हम छोटे हो सकते हैं, लेकिन इससे आपको हमें धमकाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। हिंद महासागर किसी विशेष देश का नहीं है और मालदीव किसी के पीछे रहने वाला नहीं है। इसके बाद मालदीव ने भारत को 15 मार्च तक अपने 88 सैनिकों को वापस बुलाने की अंतिम सीमा भी तय दी है। इसके अलावा आस-पास के क्षेत्र के हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण पर पहले ही रोक लगा चुका है। मालदीव द्वारा भारतीय परियोजनाओं के करार को रद्द करने तथा भारत पर निर्भरता को कम करने के लिए कई योजनाओं को गति प्रदान की जा रही है। मालदीव ने चीन के साथ बेल्ट एंड रोड, आपदा प्रबंधन, अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढांचे के निर्माण पर सहयोग के 20 समझौतों पर हस्ताक्षर कर ‘चाइना फर्स्ट' की नीति अपना चुका है। 
        केवल पर्यटन के आधार पर चीन-मालदीव संबंधों के विकास को समझना अदूरदर्शी सोच होगी। मालदीव भूमि- क्षेत्र और जनसंख्या के मामले में एक छोटा देश है, लेकिन भू-राजनीति के मामले में इसका रणनीतिक महत्व अधिक है। हिंद महासागर में मालदीव के पास छोटे- छोटे द्वीप हैं, जिसमें लगभग नब्बे हजार वर्ग किलोमीटर का बृहद विशेष आर्थिक क्षेत्र आता है, जिससे वह हिंद महासागर के एक बड़े हिस्से पर अधिकार रखने वाले देशों में से एक है। चीन इस क्षेत्र में मालदीव के साथ रणनीतिक साझेदारी स्थापित करने के लिए एक कार्य योजना के तहत पहल कर रहा है। समुद्री व्यापारिक मार्गों से मालदीव की निकटता चीन के आकर्षण का कारण है। हिंद महासागर चीन से दूर है, परंतु उसके आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा के हित निहित है। चीन ने हिंद महासागर में अपनी पैठ बनाने के लिए कर्ज- जाल की नीति अपनाई है। कर्ज देकर चीन प्रमुख बंदरगाहों को कब्जे में लेकर अपनी सैन्य गतिविधियों को संचालित करता है। 
        हिंद महासागर में चीनी वैज्ञानिक अनुसंधान के सैन्य उपयोग पर अमेरिकी थिंक टैंक वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) की रिपोर्ट में बताया गया है कि कई देश हिंद महासागरीय क्षेत्र में चीन के खतरे को महसूस कर रहे है। इसका कारण चीन की सेना का हिंद महासागर में परिचालन पहुंच और क्षमताओं के विस्तार सक्रिय होना हैं। यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब भारत विरोधी मोहम्मद मुइज्जू सत्ता में आने के बाद मालदीव और चीन के संबंधों को मजबूत करने में लगे हैं, जबकि श्रीलंका ने हाल ही में चीनी अनुसंधान जहाजों को अपने बंदरगाहों पर जाने से रोक लगा दिया है। 
        हिंद महासागर के तटीय भाग का लगभग 14 प्रतिशत भाग भारत के अधिकार क्षेत्र में आता है तथा लगभग हिंद महासागर की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व भी करता है। यही कारण है कि हिंद महासागर में बेल्ट एंड रोड परियोजना के माध्यम से चीन अपने विस्तारवादी मंसूबों को सफल बनाने के लिए भारत की उपस्थिति को सीमित करना चाहता है। चीन ने अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुकूल विकास-पथ का हवाला देते हुए मालदीव की संप्रभुता, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा करने में दृढ़ता से समर्थन देने की बात कही है। शंघाई एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के रिसर्च फेलो हू झियोंग ने मालदीव में भारत की सैन्य उपस्थिति को खत्म करने में चीन के द्वारा मदद करने की भी संभावना को व्यक्त किया है। 
        चीन अपनी विस्तारवादी मंसूबों के लिए हिंद महासागर में भारत को घेरना चाहता है। इसके निमित्त कर्ज जाल में फांस कर श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा है। पाकिस्तान का ग्वादर व म्यांमार में क्याउकफ्यू बंदरगाह उसके शिकंजे में है। हिंद महासागर परिक्षेत्र में हो रहा चीनी विस्तार भारत के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक चुनौती बन गयी है। ब्लू इकॉनमी बनने के लिए चीन द्वारा खड़ी की गयी वैश्विक भू-राजनीतिक व भू-आर्थिक परिस्थितियों के कारण हिंद महासागरीय देशों को स्वतंत्र व समावेशी बने रहने लिए प्रतिबद्ध व एकजुट रहना आवश्यक है। चीन ने हिंद महासागर में अपनी पैठ बनाने के लिए भारत को छोड़कर अन्य 19 हिंद महासागरीय देशों के साथ फोरम के माध्यम से प्रयास शुरू कर चुका है। 
        अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के अनुसार चीन वर्तमान में मालदीव का सबसे बड़ा कर्जदाता है, जो इसके कुल ऋण का लगभग 20 प्रतिशत है। मालदीव पर चीन का लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का कर्ज है, जबकि इसकी कुल जीडीपी लगभग 4.9 बिलियन डॉलर है। इसके पहले निवेश के नाम पर चीनी कर्ज-जाल में फंसे श्रीलंका और पाकिस्तान में गहरे आर्थिक संकट देखने को मिला है। भारत विरोधी मोहम्म्द मुइज्जू की नई सरकार का चीन के प्रति झुकाव मालदीव को कर्ज के जाल की ओर बढ़ता कदम है, जो हिंद महासागर में चीन के विस्तार का अवसर प्रदान कर सकती है। भारत स्वयं एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, जो हिंद महासागरीय देशों की सुरक्षा व संप्रभुता की रक्षा के लिए सक्षम तथा चीन के विस्तारवाद को नियंत्रित करने में सफल होने की उम्मीद की जा सकती है।

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