जुल्म के खिलाफ पश्तूनों का संघर्ष- (दिसम्बर 2020)- राष्ट्रीय सहारा

 



    ऋग्वेद में पक्त्याकय और आपर्यतय के नाम से वर्णित पश्तून एक कबीलाई समाज है, जिन्हें पठान, पख्तून, पुश्तून भी कहा जाता है। डूरंड रेखा अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पारंपरिक पश्तूनों को दो भागों में विभाजित करती है। इनकी भाषा पश्तो है। पश्तूनों की एक आदिवासी आचारसंहिता पश्तूनवाली है जिसकी मर्यादा में ये जीवन-यापन करते है। अफगानी लोक-मान्यताओं एवं गार्जियन में वर्ष 2010 में प्रकाशित रोरी मैक कार्थी के लेख के अनुसार अश्शूरियों ने आज से लगभग 2,700 वर्ष पहले इजरायल को जीत लिया और 12 में से 10 जनजातियों को निर्वासित कर दिया था जिनमें पश्तून भी एक है, जो मूलतः यहूदी हैं। वर्तमान समय में अधिकतर पश्तून पशुपालक हैं और खेती भी करते हैं। विश्व में इनकी जनसंख्या लगभग 07 करोड़ है, जिसमें 04 करोड़ पश्तून पाकिस्तान में हैं, जो पाकिस्तान की जनसंख्या का 20 प्रतिशत हैं। इसके बाद अफगानिस्तान में 2.1 करोड़ की संख्या है और भारत में 32 लाख रहते है। 
स्वभाव से बहादुर व पराक्रमी श्तू पाकिस्तानी सरकार व सेना के शोषण से आज के विकास की दौड़ में पिछड़ गये है और वंचित समाज के रूप में आदिवासी क्षेत्रों में रहते हुये लगातार अपनी सुरक्षा, नागरिक स्वतंत्रता और समान अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा नृजातीय समूह है। सन 1947 के भारत के विभाजन के बाद पश्तून की स्थिति में कोई सुधार नही हुआ है बल्कि पश्तून समुदाय को बैन कर पाकिस्तानी सेना ने तालिबानी आतंकवाद को खत्म करने की आड़ में पश्तूनों पर अत्याचार किये, इनकी बस्तियों को उजाड़ा, औरतों की इज़्ज़त लूटी, बच्चों का कत्ल किया। लगातार शोषण होने से पश्तूनों ज़िंदगी दू-भर हो चुकी है। अब इनके पहचान का संकट पैदा हो गया हैं। पाकिस्तानी सेना के दमन से दबे-कुचले पश्तूनी लोग सड़कों की मांग नहीं कर रहे, विकास नहीं चाहते, वे सिर्फ इज्जत और सम्मान के साथ अपने जीने का अधिकार मांग रहे हैं। पश्तूनी अहिंसा में विश्वास रखते हैं, यहाँ तक कि आक्रामक भाषा का भी प्रयोग नहीं करते क्योकि ये सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान के रास्ते चलने पर यकीन रखते है, जो पश्तून समाज के अधिकारों के लिए लड़ते रहे और 20 जनवरी 1988 को पेशावर में ही उन्ही के घर में नज़रबंद कर उन्हें मार दिया गया। 
    अपनी अस्मिता के लिए आवाज उठा रहे पश्तूनों को शांतिपूर्वक प्रदर्शन का हक भी नहीं दिया गया है बल्कि पाकिस्तानी सरकार और सेना इनके खिलाफ हिंसक हो जाती है और अत्याचार व क्रूरता की सीमा को भी पारकर जाती है। अफगानिस्तान की सीमा से लेकर कश्मीर तक जितने भी पश्तून हैं, उन्हें विभिन्न यातनाएं दी जा रही हैं। काफिर कहकर इनके मानवाधिकारों को कुचला जा रहा है। यह बर्बरता पाकिस्तानी सरकार और सेना दोनों मिलकर पश्तून समाज के लोगों पर कर रहे है। पिछले कई वर्षों में हजारों निर्दोष पश्तून लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। 
    इस अत्याचार के खिलाफ दुनिया भर में पश्तून अब एकजुट होने शुरू हो गए हैं। वर्तमान युवा पीढ़ी अपनी स्वतंत्रता और मानवाधिकार के मूल्यों को समझ रही है और पश्तूनी अस्मिता को प्राप्त करने के लिये संघर्ष के दौर से गुजर रही है। पिछले कुछ दशकों में युद्ध के पीड़ितों व आदिवासियों की समस्याएं के मुद्दे उठने भी शुरू हो गयेवर्ष 2014 में मंजूर पश्तीन ने पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (पीटीएम) की शुरुआत की थीजनवरी 2018 में दक्षिणी वज़ीरिस्तान के नक़ीबुल्लाह मेहसूद की मौत के बाद पश्तूनी युवा पीटीएम के मूवमेंट से सीधे जुड़ गये। इसमें युद्धग्रस्त क्षेत्रों से लापता हुए लोगों के परिजन भी शामिल होने लगे। धीरे-धीरे पीटीएम का यह प्रदर्शन पूरे पाकिस्तान में अपनी जगह बनाता जा रहा है। पीटीएम का दावा है कि लगभग 08 हज़ार पश्तून लोग लापता हैं। वार ऑफ टेरर के नाम पर वजीरिस्तान में पश्तूनों पर जुल्म बढ़े है और इस क्षेत्र में लाखों लोग बेघर हुए। पश्तून समुदाय के लोग कई मोर्चों पर प्रभावित हुए, जिसके बाद पीटीएम आज इनकी आवाज बन गया है। पाकिस्तानी बुद्धिजीवी इसे पश्तून स्प्रिंग कहते है। वज़ीरिस्तान के 13 क्षेत्रों में पाकिस्तानी सेना तैनात है जो पश्तून समाज पर कहर बरपाते रहते है। मंजूर पश्तीन के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना को चुनौती देते हुए ‘ये जो गुंडागर्दी है, इसके पीछे वर्दी है के नारे के साथ पूरा पश्तून समाज अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए एक साथ खड़ा है। वर्ष 2019 में 22 शहरों में पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट का एक साथ शांतिपूर्वक प्रदर्शन इसका प्रत्यक्ष गवाह है।
       पश्तून अपनी स्वतंत्रता को लेकर पाकिस्तान के अंदर आंदोलित है, जिसकी शुरुआत भारत के विभाजन के पूर्व वर्ष 1946 से शुरू हो गयी थी, जिसका मुख्य उद्देश्य अपने मूल अधिकारों को पाना है। अखण्ड भारत का अभिन्न हिस्सा रहे पश्तूनी समाज भारत से एक भावनात्मक लगाव महसूस करता है। विश्व मंच पर इस आंदोलन को एक मजबूत आवाज व नैतिक समर्थन की जरूरत है। राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच (फैंस) द्वारा 28 जून 2020 को आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में पाकिस्तानी सरकार व सेना के अत्याचारी चरित्र को विभिन्न प्रदर्शनों, मीडिया, सोशल मीडिया के माध्यम से विश्व पटल पर उजागर करने की रणनीति पर पश्तूनों की आपसी सहमति हुई। विगत सात दशकों से अपनी अस्मिता की रक्षा के इस आंदोलन को एक दिशा देते हुये पीटीएम की पुरजोर मांग है कि एक सार्वभौम, स्वतंत्र व स्वायत्त वज़ीरिस्तान का निर्माण हो जिसके अंतर्गत पश्तूनी अस्मिता व स्वाभिमान की रक्षा हो सके।



Comments

Popular posts from this blog

ताइवान से जुड़े भारत के हित- दैनिक जागरण (15.06.2024) राष्ट्रीय संस्करण

भारत-ब्रिटेन: संबंधों के क्रमिक विकास की उम्मीद- हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा (13.07.2024)